रथ के पहिये | Rath Ke Pahiye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
396
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रथ के पिये
में दाली गई है ।”
(गीत और गर क विना तो सभ्यता की कल्पना ही नहीं की था
सकती,” यात्री मानो किसी ठुमरी का पहला बोल पेश करता हे |
“ध्न ज़रा उत जमाने के हथियार भी सुलाहजा हों,” क्यूरेटर आगे बढ़
क शोकेस फी तरफ इशारा करता है, “ये रहे तीर-कमान और माले, खंबर
और गुर्ज, बरहियाँ और कुलहाड़ियाँ | ये सब शिकार के हथियार है। ভুলে
पर भी तलवार का पता नहीं चलाया जा सका | ने जिरह-बकतर किस्म की
कोई चीज मिली है। शायद मोहँंजोदड़ों के लोग ज॑गजू किस्म के इन्सान
न थे। उन्हें कभी बंग से वास्ता न पड़ा होगा ।”
“लंग पर लानत भेजो,” यात्री उमर कर कहता है, “पहले महायुद्ध
के बाद हमारे युग में दूसरा महायुद्ध लड़ा जा रहा है। इुनियाँ तबाह हो
रही है।” .
“दे रहे बच्चों के खिलौने,” क्यूरेटर वया पदां उठाने के श्रन्दा में
बहता है, “बच्चों पर तो हर युग की सभ्यता निगाह डालती है। बच्चों
के खिलौनों में पालतू पशु देलिए, चिड़ियाँ देखिए, गुड़िया देखिए; वह
रही मारी की वेलगाड़ी | इराक और मिश्र में इसा के जन्म से सवा तीन
हजार वरस पहले का जो रथ मिला है उसकी बज्ञा-क्ता हू-ब-हू ऐसी है।”
“दुर क्यो चते हो, वणरः साहब !” यात्री जेसे व्यंग का अवसर
पाकर कहता है, “अजी, बेलगाढ़ी का यही नमूना हमारे देश ॐ चप्पे-चप्पे
पर मिलता है। बेलगाड़ी का यही नमूना सिन्ध में भी क्रायम है। डोकरी
और भोहँजोदड़ों के बीच जो वैलगाड़ियाँ चलती हैं, इसी डिज़ाइन की हैं
और उन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि हमारे देश मे जग मी तखकी
नहीं की; हम आज 'भी वहीं खड़े हैं जहाँ मोहेंजोदड़ों के युग मे खड़े थे |
व्यूरेटर आश्चय से बेलगाड़ी के पहियों की भ्रोर देखता है |
“बह रही शक्ति या एथ्वी देवी”? क्यूरेटर आगे बढ़कर एक शो-केतत
की तरफ़ संकेत करता है, “इस मूर्ति के तीव मुह हैं भ्रोर छुः आँखें;
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