शिवाजी | Shivaji

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Shivaji  by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भोग-विलास तो दूर रहा एकाग्राचित्तसे उपाजित ज्ञान बारीक कारी- गरी यहाँ तक कि सम्यता भी श्रसंभव बातें थीं । मराठोंकी प्रधान- ताके कालमे इन विजेता मराठोंके व्यवह्ारकों देखनेसे उत्तर-भारत- वापियोको ये घमणडी मदोन्मत्त उजइ सम्यताहीन और कुछ हृद तक जंगली माढूम होते थे । उनमेसे बड़े लोग भी कला-कौशल बारीक कारीगरी हिलमिल कर रहने और भलमनसाहतपर बहुत ही कम ष्यान देते थे। यह सच है कि अठारहवीं शताब्दीमें भारतके बहुतसे प्रान्तोंमें मराठे राज्य करते थे परन्तु उन लोगोंकी बनवाई हुई कोई अच्छी इमारत सुन्दर चित्र या उमदा हस्तलिखित किताब नहीं मिलती । मराठोंका जातीय चस्त्र महाराष्ट्र देश सूखा श्रौर स्वास्थ्यप्रद है । इस प्रकारके जल-वायुका गुणा भी कम नहीं है । इसी कठोर जीवनके कारण मराठोंके स्वभावमें ऋपने श्रापपर भरोसा रखना साहस मेहनत ठोंग-रहित सीधा-सादा व्यवहार समाजमे सबके साथ एक-सा बर्ताव श्रौर हरएक आदमीकों अपनी इज्जतका खयाल तथा स्वाघीन रहनेकी इच्छा इत्यादि बड़े-बड़े गुण उत्पन हुए थे। सातवीं सदीमें चीनके यात्री हुयानतुयाडूने अपनी बॉखो मराठोंको इस प्रकार देखा था-- इस देशके रहनेवाले तेज़ और लड़ाकू है ये उपकारको कमी नहीं भूलते श्रौर श्रपकार करने- वालेसे उसका बदला लेना चाहते हैं | कोई तकलीफें हो और मदद चाहे तो वे अपना सर्वस्व त्याग करनेको तैयार हो जाते हैं और अपमान करनेवालेको बिना मारे नहीं छोड़ते है । बदला लेनेके पहले थे शत्रुको चेतावनी भी देते है।




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