गांधी जी की सूक्तियाँ | Gandhi Ji Ki Suktiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.85 MB
कुल पष्ठ :
153
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राजबहादुर सिंह - Rajbahadur Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)--भोजन सात्विक भर सादा होना चाहिए। शराब, भंग;
श्रफीम, तम्बाकू, चाय, कहा, कोकीन, मसाले श्रौर चटनी
आदि भोजन की चीजें नही हैं, न इन्हें स्वाभाविक पेय की ही
संज्ञा दी जा सकती है ।
--चोरी करना एक बीमारी है प्रौर इसका कारण बुरा
श्राह्मार भी हो सकता है 1
--मनुप्य की ारी रिक बनावट देखकर यही प्रतीत होता
है कि प्रकृति ने मनुप्य को लाकाहारी बनाया है । मनुप्य श्रौर
फल भक्षी जीवों के शारी रिक अवयवों में बहुत कम भ्रन्तर है ।
डावटरों का कहना है कि ९६ प्रतिशत व्यक्ति
जरूरत से फ्यादा खाते हैं ।
-हम लोग झधिक भोजन करने के थोड़े-वहुत श्रपराधी
हैं इसलिए धार्मिक दृष्टि से कभी-कभी ब्रत रखने के नियम
चनाए हूँ । सचमुच स्वास्थ्य की दृष्टि से पक्ष में एक दिन ब्रतत-
उपवास करना जरूरी है ।
मानव-जीवन का रक्षक है, इसलिए उसका
निणंय करते समय विवेक रखने की जरूरत है ।
मानव-जीवन की देंसिक झ्ायध्यकताओं में से
है; पर उसका नियत्रण अनिवार्य है ।
“हार सन्तुलित श्रौर विवेकपूर्ण हो तो शरीर में कोई
रेग हो ही नहीं राकता 1
“यदि ग्राहार में विवेक नहीं रहा तो मनुष्य और पशु
में अन्तर हो कया है । कर
“रजव तक झाहार में स्वाद की मवानता ' है, तब तक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...