गांधी जी की सूक्तियाँ | Gandhi Ji Ki Suktiyan

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Gandhi Ji Ki Suktiyan by राजबहादुर सिंह - Rajbahadur Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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--भोजन सात्विक भर सादा होना चाहिए। शराब, भंग; श्रफीम, तम्बाकू, चाय, कहा, कोकीन, मसाले श्रौर चटनी आदि भोजन की चीजें नही हैं, न इन्हें स्वाभाविक पेय की ही संज्ञा दी जा सकती है । --चोरी करना एक बीमारी है प्रौर इसका कारण बुरा श्राह्मार भी हो सकता है 1 --मनुप्य की ारी रिक बनावट देखकर यही प्रतीत होता है कि प्रकृति ने मनुप्य को लाकाहारी बनाया है । मनुप्य श्रौर फल भक्षी जीवों के शारी रिक अवयवों में बहुत कम भ्रन्तर है । डावटरों का कहना है कि ९६ प्रतिशत व्यक्ति जरूरत से फ्यादा खाते हैं । -हम लोग झधिक भोजन करने के थोड़े-वहुत श्रपराधी हैं इसलिए धार्मिक दृष्टि से कभी-कभी ब्रत रखने के नियम चनाए हूँ । सचमुच स्वास्थ्य की दृष्टि से पक्ष में एक दिन ब्रतत- उपवास करना जरूरी है । मानव-जीवन का रक्षक है, इसलिए उसका निणंय करते समय विवेक रखने की जरूरत है । मानव-जीवन की देंसिक झ्ायध्यकताओं में से है; पर उसका नियत्रण अनिवार्य है । “हार सन्तुलित श्रौर विवेकपूर्ण हो तो शरीर में कोई रेग हो ही नहीं राकता 1 “यदि ग्राहार में विवेक नहीं रहा तो मनुष्य और पशु में अन्तर हो कया है । कर “रजव तक झाहार में स्वाद की मवानता ' है, तब तक




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