अतीत के चल - चित्र | Ateet Ke Chal-chitra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
123
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८ | अतीत के
भजन भर आता था ऐसो सिय रघुवीर भरोसो और उसे वह जिस
प्रकार गाता था उससे पेड़ पर के चिड़िया, कौवे तक उड़ सकते थे।
परन्तु हम छोग उस अपूर्व गायक के अद्भुत श्रोता थे--रामा केवर
हमारे लिए गाता और हम केवल उसके लिए सुनते थे।
मेरा बचपन समकालीन बालिकाओं से कुछ भिन्न रहा, इसी से
रामा का उसमें विशेष महत्त्व है ।
{उस समय परिवार में कन्याओं की अभ्यर्थना नहीं होती थी।
आंगन में गानेवालियाँ, द्वार पर नौबतवाके और परिवार के बढ़े से
लेकर बालक तक सब पुत्र की प्रतीक्षा में बेठे रहते थे (তি ही दबे स्वर
से लक्ष्मी के आगमन का समाचार दिया गया वसे ही घर के एक कोने'
से दूसरे तक एक दरिद्व निराशा व्याप्त हो गईं। बड़ी बूढ़ियां संकेत से मूक
गानेवालियो को जाने के लिए कह देतीं और बड़े बूढ़े इशारे से नीरव
नाजे वालों को बिदा देते--यदि एसे अतिधि का भार उठाना परिवार
की शक्ति से बाहर होता तो उसे बैरंग लौटा देने के उपाय भी सहज थे।
हमारे कूछ मे कब ऐसा हुआ यह तो पता नहीं पर जब दीर्घकाल
तक कोई देवी नहीं पधारीं तब चिन्ता होने लगी, क्योंकि जेसे अश्व के
बिना अश्वमेध नही ह्ये सक्ता वसे ही कन्याके विना कन्यादान का
महायज्ञ सम्भव नहीं।
बहुत प्रतीक्षा के उपरान्त जब मेरा जन्म हुआ तब बाबा ने इसे
अपनी कूलदेवी दुर्गा का विशेष अनुग्रह समझा और आदर प्रदर्शित करने
के लिए अपना फारसी ज्ञान भूल कर एक एसा पौराणिक नाम दढ लाये
जिसकी विशालता के सामने कोई मुझे छोटा-मोटा घर का नाम देने का
भी साहस न कर सका। कहना व्यर्थ है कि नाम के उपयुक्त बनाने के
लिए सब बचपन से ही मेरे मस्तिष्क में इतनी विद्या-बुद्धि भरने छगे कि
मेरा अबोध मन विद्रोही हो उणञा। निरक्षर रामा की स्नेह-छाया के
बिना में जीवन की सरलता से परिचित हो सकती थी या नही इसमें
सन्देह हं ।! मेरी पट्टी पृज चुकी भी ओौरमे आ पर उंगली रख कर
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