भक्त और भगवान | Bhakt Aur Bhagavaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाशकीय निवेदन = হাই. प्रायः दो वषं का समय हुआ कि मेरे मन में यह विचार तरंगित हुआ कि “भक्त और भगवान” नाम से एक ऐसी पुस्तक प्रकाशित की जाय, जिससे प्राचीन कवियों के भव्य भावनामय भावों की सुन्दर समालोचनामय सरस-सूक्तियों का अनुपमेय संग्रह हो । मैंने अपना उक्त विचार श्री वियोगी इरि जी के पास लिख भेजा । उन्होने सहषं लिखना भी स्वीकार कर लिया । नि पत्र पुष्पं उन्दं भेज भी दिया; किन्तु यह जीवन का सर्वे भ्रथम अनुभव था, जब कि बडे आदमी के साथ मैंने ऐसा सम्बन्ध किया ! कुछ दिनों बाद “देर भायद्‌ दुरुस्त आयद्‌”” का सदुपदेश मिरने र्गा । इस उपदेश ने एक वर्ष का समय नष्ट कर दिया । पुस्तक का विज्ञापन किया जा चुका था, कई सौ आडर भी आ चुके थे, अन्त में जब मैंने उनसे प्राथना की, कि आप अन्तिम उत्तर मुझे दीजिये कि कब तक पुस्तक देंगे, तो उन्होंने स्पष्ट नाहीं कर दी । मैं तो बौखला उठा । अन्त में यह कहना अत्युक्ति न होगी कि ब्रज-भाषा-साहित्य-महाणव श्रीयुत पं० जवाहरलाल जी चतुवंदी ने मुझे बड़ा सहारा दिया । किन्तु वे भी कम नहीं हैं । हैं तो मस्त व्रजवासी ही ! बड़े अनुनय-विनय के पश्चात्‌ , लम्बी लिखा-पढ़ी के उपरान्त किसी प्रकार चार महीने बाद काड मित्य पुस्तक तैयार हो गई है, अमुक तिथि को आगा । किसी प्रकार उनके दर्शन हुए । गर्मी सर पर थी, छपाई के सोन्द्य का ध्यान था; किसी प्रकार जल्दी से जल्दी पुस्तक छाप डाली गईं । सभव है, शीघ्रता के कारण प्रफ-संशोधन में कुछ त्रुटियाँ रह गई हों, अतः सहृदय पाठक और विद्वान इसके लिए क्षमा करेंगे ।




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