कविता कलाप नमक सचित्र कविताओं का संग्रह | Kavita Kalap Namak Sachitra Kavitaon Ka Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
103 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ।
८०७७७
न) ৭ ध्रीर कविता का घनिष्ठं सम्बन्ध है । देनो में एक प्रकार का ग्रतोखा सादृश्य
है | दोनों का काम भिन्न भिन्न प्रकार के दृश्यों और मनेविकारों को चित्रित
कं करना है | जिस बात को चित्रकार चित्र-द्वाश व्यक्त करता हे उसी बात का कवि
कविता-द्रारा व्यक्त कर सकता है | कविता भी एक प्रकार का चित्र है। कविता
के श्रवण से आनन्द होता है, चित्र के दर्शन से | कवि और चित्रकार में किसका
आसन उच्चतर है, इसका निणेय करना कठिन है। क्योंकि किसी चित्र के भाव को कविता-द्वारा
व्यक्त करने से जिस प्रकार श्रल्लौकिक श्रानन्द् कौ वृद्धि हावी है, उसी प्रकार कविता-गत किसी
भाव का चित्रद्धारा स्पष्ट करने से भी उसकी वृद्धि होती है। चित्र देखने से नेत्र ठप्त होते हैं,
कविता पढ़ने या सुनने से कान | शझ्रतएव यदि एकही वस्तु, दृश्य या भाव का व्यक्तीकरण कविता
श्रर चित्र दोनों के द्वारा हो ते, नेत्र और कान दोनों की एकद्दी साथ ठप्ति होने से, अवश्य दी
आनन्दातिरेक की प्राप्ति होगी । यही समझ कर कितने ही चित्रकला-प्रेमी ओर कविता-लोलुप
सज्जनों फे आग्रह से यह सचित्र कविताश्रों का संग्रह पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाता है। इसमें
प्रकाशित कितनी ही सचित्र कवितायें “सरस्वती” नाम की मासिक पत्रिका में छप चुकी हैं।
पर कितनी ही ऐसी भी हैं जो अब तक कहीं प्रकाशित नहीं हुई ।
चित्रों के गुण-देष का यथाथ ज्ञान किसी बिरले ही का होता है । रुचिवैचित्य के कारण जिसे
एक मनुष्य गुण समभता है उसे ही दूसरा दोष समभता है | यहाँ पर हमें एक कहानी याद शाती
है जिसे हमने किसी अगरेज़ो पुस्तक में पढ़ा था। किसी चित्रकार ने यद सोचा कि एकरेसा
चिन्न बनाना चाहिए जो सबका पसन्द शरावे । इसी इरादे से उसने एक चित्र बनां कर बाज़ार
में रख दिया श्रौर चित्र के नीचे लिख दिया कि इसमें जहां पर जिसे कोद दाष देख पड़े वहाँ पर
वह एक काला बिन्दु बना दे ।शाम को जो उसने उस चित्र को देखा ते उस पर सेकड़ों बिन्दु
पाये । उपर से नीचे तक सारा चित्र काला हो रहा था । दूसरे दिन उसने बेसाही एक और चित्र
बना कर रख दिया । इस बार उसने चित्र के नीचे यह लिख दिया कि इसमें जहाँ पर जिसे
कोई गुण देख पड़े वहाँ पर वह एक बिन्दु रख दे। इस बार भी चित्र की वही दशा हुई | शाम
को वह फिर ऊपर से नीचे तक काला मिल्ला | इस पर चित्रकार ने यह सिद्धान्त निकाला कि
यह सम्भव नहीं कि सबका एकही चीज़ पसन्द हो । क्योंकि पहले दिन कं सारे हष दुसरे दिन
गुण हा गये ।
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