सिद्धान्त और समीक्षा | Siddhant Aur Samiksha

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Siddhant Aur Samiksha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 सिद्धान्त और समीक्षा अभेदन्ग्रनुभूति उसके लिए जब इृष्ठ और सत्य हुई ही थी तभी विभेद श्राप । एक आदर्श था* तो दूसरा व्यवहार । एक भविष्य था तो दूसरा वतमान । इन्हों दोनों के संघर्ष ओर समन्वय में से मनुष्य- प्राणी के जीवन का इतिष्ाभ्र चल। श्रौर विकास प्रगटा । मनुष्य की;मनुष्य के साथ, समाज के साथ, राष्ट्र के भऔर विश्व के साथ ( भ्रौर इस तरह स्वयं अपने साथ ) जो एक सुन्दर सामंजस्य “+-एक स्वरता, (1 87110719 > स्थापित करने की चेष्टा चिरकात्र से चली आरा रही है, वही मनुप्य जाति की समस्त संग्रहीत निधि की मूल है। श्रर्थात्‌ , मनुष्य के लिए जो कुछ डपयोगी, मुल्यवान्‌ , सातभूत आज है, वह ज्ञात श्रौर श्रज्ञात रूप में डछो एक सत्य-चेष्ठा का प्रतिफल है। हस प्रक्रिया में मनुष्य जाति ने नाना भाँति की अनुभूतियों का भोग किया । सफलठा की, विफल्नता की, क्रिया की, प्रतिक्रिया कोी,--दर्ष, छकोभम, विस्मय, भीति, श्राह्ाद, छणा ओर प्रेम--सब भाँति की श्रनुभूतियाँ जाति के शरीर ने और इतिद्वास ने *गीं, श्रीर वे जाति के जीवन ओर भविष्य में मिल বাই । भाँति- भांति से मनुष्य नेरन्द्र श्रपनावा, श्रौर व्यक्त किया । मन्दिर बने, ती4 बने, घाट बने,-7.६त्र, पुराण, स्तोन्न-प्रत्थ बने,--शिल्ालेख बिखे गए, स्तम्भ खड़े हुए, मूर्तियां बनीं श्रौर स्तूप निर्मित हुए। मनुष्य ने अपने हृदय के भीतर विश्वको यथाघ्ताध्य खोरशर जी- जो अ्रनुभूतियाँ पा३ ,--मिट्टी, पस्थर, धातु अथवा ध्वनि एवं भाषा आदि को उपादान बनाकर, उन्हे द्वी रख लेने की उसने चेष्टा की । परिणाम में, ६मारे पाप्त ग्रन्थों का श्रहूट, श्रतोत्न संग्रह दे, भोर जाने क्या-क्या नहीं है । मानव उति कीट अ्रनन्त निधि में जितना कुछ अनुभूति- भाण्डार लिपि-बद्द है, वही साहित्य है, भर भी, श्रक्षर-बद्ध रूप में जो अनुभूति-संचय विश्व को प्राप्त होता रदेगा, वह होगा साहित्य । ॐ




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