खोटा बेटा | Khota Beta

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Khota Beta by विश्वम्भरनाथ शर्मा - Vishvambharnath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~--~~-~-~------------~------~--~------------------------------------------~-----~-~- ~~~ ~~ शुरू कर दिया । कुमार क द्व हो पड़ा और बोला--यह क्या ? इसे कहाँ लिये जाते हो ! मैंने इसे गोली से मारा है ।” कुमार का चेहरा लाल हो उठा | वह अपना शिकार दूसरे को देते को तैयार नहीं था । उनमें से एक ते दबी जबान से कहा-- “यह अच्छी रही | दो घणटे से हम इसके पीछे दौड़ रहे ह ग्नौर भ्रब यह इनका हो गया ) सरकार | गोली से सुश्रर नहीं मारा जाता १ कमार का चेहरा तमतमा उठा । उन्होने तलवार की मूठ पर हाथ रख कर कहा-~ देख वे ! संभाल कर बातकर, नहींतो सुश्रर की लाड पर तेरी भी लाह गिरेगी ।? शेरसिह ने मुसकरा कर कहा--बेठा यह तुम्हारे किस काम का। ये विचारे इसके लिये तंग हुये । इन्होंने इसे जरूमो भी खूब कर डाला था इसलिये यह इन्हीं का क्षिकार हैं। इन्हें ले जाने दो । इन बेचारों का भोजन चलेगा ।” कुमार ने कहा--कदापि नहीं ! मेने इसे मारा प्रतएव मेरी चीज है। मुझे अपनी चीज पर अधिकार है। में यह कभी स्वीकार नही कर सकता | माँग कर भले ही ले. जाँय पर श्रधिकार जमा कर नही ले जा सकते ।” शेरसिंह के माथे पर बल पड़ गये । उसका चेहरा तमतमा झठा। आंखें लाल हो गई' । उसने कुछ ककेश स्वर में कहा--बार बार बया कहते हो कि मेरी चीज है, मेरा भ्रधिकार है।? दूसरे के जख्मी किये हुये सुअर पर इतना अ्रधिकार ! बड़े दारम की बात है । जिस पर तुम्हारा ग्रधिकार है, जो तुम्हारी चीज है, जिसे दूसरे हड़प किये बेठे हैं, उसकी तुम्हें खबर एक नहीं।?” । | एक साँस ही में शेरसिह ने यह सब कह डाला और जब उसने




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