आश्चर्य घटना | Ashcharya Ghatna

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Ashcharya Ghatna by श्री जनार्दन झा - Shri Janardan Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ तीसरा परिच्छेद ९३ सकता १ विवाह के समय मन्त्र द्वारा जो सम्बन्ध जोड़ा जाता है उसकी अपेक्षा कही वढ़कर सम्बन्ध मेने इसकी साँस पलटाकर इसे साथ जोड किया है ! सन्त्र पठकर इसके साथ एक कृचिम सम्बन्ध जोडना होता, किन्तु दैव की अलु- करूलता से जो सम्बन्ध यहो जडा है वह अकृचिम है । कु देर मे वधू चैतन्य होकर उठ वैटी। उसने दीले कपडे सँभालकर संह पर घूवट डाला। रमेश ने पूछा--तुम्हे कुछ मालूम दै, तुम्दारी नाव ओर तुम्हारे साथ की खियाँ कहां गह ? उसने सिर हिलाकर जताया- नदी । रमेश ने केदी--तुम कुछ देर तक यहाँ अकेली बैठ सको तो मै एक८वार घूमकर उन सबकी खोज करूँ । वालिका ने; इसका कुं उत्तर न दिया! किन्तु उसका सारा शरीर सकुचित होकर सातो बोल उठा-मुमे यद्य अकेली मत छोड जाना , तं बधू के सन के भाव, को হা समझ गया। खड़े होकर उसने बड़े ध्यान से एक वार चारों ओर देखा,“पर कहीं कुछ नज़र नहीं आया। तब वह खूब जोर से चिल्लाकर, आत्मीय जनों का नाम ले-जेकर, पुकारने लगा {* पर कदी किसी की कुछ टोह न मिली। आखिर वह हताश , होकर वैढ गया । देखा, वधू दोनों हाथो से मँह बन्द कर रोने की अविाज को रोकना चाहती है। इससे उसका दम रह-रहकर फूल उठता है और उसके मुँह से रोने की घीमी आवाज निकल पड़ती है।




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