मितव्ययता | Mitavyayata

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Mitavyayata by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ परिश्रम । समाजमें दो प्रकारके मनुष्य होते है,---जोड़नेवाले और खर्च करने- वाले, दूरदर्शी और अदूरदर्शी, मितब्ययी और अपव्ययी, निधन और धनवान्‌ | जो मनुष्य परिश्रम करके मितव्ययतासे कुछ रुपया जमा कर लेते है वे अपने काममे दिन दूनी और হাল चौगुनी उन्नति करतें है ओर धीरे धीरे वाणिज्य व्यापार प्रारम्भ करके थोडे दी दिनोमे धनवान्‌ बन जाते है । जो छोग मितव्ययी है वे मकान बनवाते रै. कर कारखाने खोलते है, कोठियाँ कायम करते हे, रे जहाज बनवति है, खाने खुदवाते है, एंजिन लगवाते दहै, अथात्‌ भति तिके नये नये काम जारी करते है | यह सब मितव्ययताका फर है ओर धनको उत्तम कार्योमिं र्गा- नेकी महिमा हे । जगत्‌की उनतिमे अपव्ययी मनुष्यका कोह भाग नहीं | जितनी उसकी आमदनी है वह सब खर्च कर डाक्ता है | उससे किसीको कुछ छाम नहीं पहुँचता | चाहे वह कितना ही धनः पैदा कर ले, किंतु उसकी दशामें किसी तरहकी कोई उन्नति नही होती। वह सदा दूसरोंका सहारा ताकता रहता है और मितव्ययी मनुष्यका दासः बना रहता है ।




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