जैनपदसंग्रह भाग 5 | Jainpadsangrah Bhag 5
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ज्ञानमरईं हमको दरसाये । ऐसे ही हममें हम जानें,
बुधजन गुन मुख जात न गाये ॥ श्रीजिन० ॥ ३ ॥
९
वि क न 1
चधाई राजै हो आज राजे, बधाई राजे, नाभिरायके
दधार ইল सची सुर सव मिङि आये, सजि ल्याये गजराजे
॥ बघाई० ॥ १ ॥ जन्मसदनतं स्वी षभ ङः सोपि
दये सुरराज । गजयै धारि गये सुरगरिपै, न्दोन करनके
ऋज || बधाई० ॥ २ 1 आट सहस सिर करुस जु ढारे,
पुनि सिंगार समाजे ! स्याय धो मृरुदेवी कर्मः, हरि
नाच्यौ सुख साजे ॥ वधाई० ॥ ३ ॥ रुच्छन व्यंजन सहित
सुभग तन, कँचनदुति रवि रजे ! या छविं बुधजनके
उर निशि दिन, तीनज्ञानज्जुत राजे ॥ वधाई० ॥ ४ ॥
तग-छलित के तितालो ।
हो जिनवानी जू , तुम मोकों तारोगी ॥ हो० ॥ देक ॥
आदि अन्त अविरुद्ध वचनत, संशय श्रम निरवारोगी
॥ हो० ॥ १ ॥ ज्यों प्रतिपाछत गाय वत्सर्को, त्यौ ही
सुझकों पारोगी। सनमुख कार बाध जव अवे, तव
तत्का उवारोगी ॥ हो० ॥ २ ॥ बुधजन दास चीनने
माता, या विनती उर धारोगी। उलझि रहा हूं मोह-
जालमे, ताकों तुम सुझझारोगी ॥ हो० ॥ ३ ॥
(११)
राग-विखाचट कनडी 1
मनक हरष अपार-चितक हरष अपार, वानी सुनि
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