तीन दिन | Tiin Din

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Tiin Din by चन्द्रगुप्त विध्यालंकर - Chandragupt Vidhyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीन दिन १३ तेरा। बाहर वातावरण सें अभी तक का फ्री सरदी थी, परन्तु झील का पानी बहुत ठंडा नहीं था। घर वापस आया तो आज कल से भी अधिक देर हो गई थी। मेरे मे ज्ञबान डाक्टर आनन्दकुमार के साथ मेरी प्रतीक्षा कर रह थे। आनन्द- कुमार भी इस समय उतने उदास प्रतीत नहीं हो रहे थे । आज अपनं मे्तव्रान से डाक्टर आनन्दकुमार कौ उदासी का कारण ज्ञात हुआ। कारण बसा ही था, जिसकी मेने कल्पना को थी। करोब ५ साल हुए अपने हो कालेज में विज्ञान की एक छात्रा कुमारी जेनट से आनन्द कुमार का परिचय हुआ था । यही परिचय बढ़ते-बढ़ते पारस्परिक आकर्षण की सोमा में आ पहुँचा । महाकाल ने जसे चपचाप उन दोनों के हृदयों को एक-दूसरे के साथ सी दिया। दोनों एक दूसरे के लिए प्रेरणा ओर स्फरति का सोत बन गए । पिके साल कुमारी जेनट के निमन्त्रण पर डाक्टर आनन्दकुमार उसके घर पर भी गए थे। जेनट के माता-पिता उनसे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए थे। जेनट और आनन्दकुमार को इस बात का विश्वास हो गया कि उनके माता-पिता को उनके विवाह के सम्बन्ध में कोई एतराज्ञ नहीं होगा । दोनों ने एक-दूसरे से कहा कि वे एक-दूसरे के बिना जीवित नहीं रह सकते | दोनों ने एक दूसरे से न जाने कितनी ही किस्म को प्रतिज्ञाएँ कीं। दोनों का संसार जेसे सिमट कर एक-दूसरे तक ही सीमित हो गया। कुछ ही दिन हुए कि आनन्दकुमार ने अपने सब मित्रों को इस बात की सूचना दे दी कि इसो वसन्‍्त में वह कुमारी जेनेट से विवाह कर रहे ह्‌ । मेरे मेजबान के पास भी उनका यह निमन्त्रण आया था । कि एकाएक नीले आस्मान मं से वज्र गिरा। जेनेटकेपिता कापत्र उन्हं मिला कि उनका परिवार किसी गेर ईसाई के साथ अपनी जेनेट का विवाह करने को तयार नहीं है। इतना हो नहीं, अपने बड़े लड़के को भेज कर जेनेट को उन्होंने अपने पास बुला लिया । आनन्दकुमार की विद्वलता का पारावार न रहा। उन्होंने कितनी ही दलीलें देकर जेनेट




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