हिंदी नवरत्न | Hindi Navratn

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Hindi Navratn by दुलारेलाल - Dularelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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রও हिंदी-नवरत्न পা १२ कवित्त तो एेसे सुचिर है किं उनका सामना भूषण का कोद कपित्त नहीं कर सकता, और उनके सामने देव के सिवा और किसी के भी कवित्त ठहर नहीं सकते, पर मतिराम के शेष पद्म भूषण के अनेक पद्यों करे सामने ठहर नहीं सके | इस प्रकार मतिराम और भूपण की तुलना करके हमने भूपण को श्रेष्ठ पाया । इसी प्रकार भूषण को केशवदाससे मिलाया, तो भी भूपण ही की कविता में विशेष चमत्कार देख पड़ा | प्रथम तो हमे इस बात पर आश्चर्य-सा हुआ, क्योंकि हम पहले केशवदास को भूषण से बहुत अच्छा समझते थे, पर ज्यों-ज्यों अधिक मिलाते गए, ल्यो-त्यों हमारी दृष्टि में भूषण का ही चमत्कार बढता गवा | तब हमने इन्हे बिहारीलाल से मिलाया, पर उन कबि-रक्ष के सम्मुख इनके पद्म ठह९ न सके । यह तुलना केवल पद्म पढ़कर ही नहीं को गई, वरन प्रत्येक पद्म को नंबर देकर, मनोहर पद्मों की संख्या और प्रति सैकडे उनका औसत लगाकर, सब बातो पर कई दिन तक ध्यान-पूवेक विचार करने के उपरांत की गई थी । इसी बीच में काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा ने हमसे प्राय: २०० प्रृष्ठो में हिदी-साहित्य का एक इतिहास लिखने के लिये कहा | उस समय हम कालिदास- कृत रघुबश का पद्यानुवाद कर रहे थे | वह ढाई सर्गों तक हो भी चुका था। हमने उसी जगह उसे छोड दिया, और इतिहासबालें काम के लिये समालोचनाओ का लिखा जाना श्रावश्यक सममकर यही काम फिर हाथ में ले लिया | तब, सं० १६६४ में, हमने बहुत-से कवियों पर समालोचनाएँ लिखो | यह काम करते-करते धीरे-धीरे इसमें बुद्धि फेलने लगी, अर्थात्‌ सब प्रकार के कवियों की उत्तमता अ्रथव। निकृष्टता समझ पडने लगी | धीरे-धीरे यह विचार उठा कि पाँच परमोत्कृष्ट कवियों को लेकर, संस्कृत-कवि-पंचक की भोति, माप्रा-कवि-पैचक्र नाम का एक ग्रंथ हम भी लिखें। उसमें सूर, तुलसी, देव, बिहारी और केशवदास के नाम रखने का विचार हुआ | फिर भूषण की कविता का चमत्कार जब ध्यान में आया, तब उनको छोड़ देना अनुचित जान पड़ने लगा, और भापा-क्ति-पटक लिखने का विचार उठा। पीछे से सेनापति की कविता मे ऐसा अनूठापन देख पड़ा, और वह ऐसी अच्छी समझ पडी कि उनका भी नाम मिलाकर कवि. सप्तक बनाने का संकल्प हुआ | अनंतर भारतेंदु तथा चंद की रचमाएँ भी उत्कट तथा परम मनोहर देख पडी । इस प्रकार हिदी-नवरल का नाम ध्यान में आया, ओर इसी नाम से प्रस्तुत ग्रंथ बनाने का हृढ संकल्प हुआ । पीछे से जायसी की कविता बहुत बढिया समझ पड़ी, और सेनापति के स्थान पर उनका नाम रखने का विचार हुआ; कितु अंत को, उसे कई बार ध्यान से पढने पर, उसका चमत्कार कुछ फीका जंचा, और जायसी का स्थान' तोप कवि की श्रेणी में




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