कुंद कुंद प्राभृत संग्रह | Kund-Kund Prabhrit Sangrah

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Kund-Kund Prabhrit Sangrah by कैलाशचंद्र शास्त्री - Kailashchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ৮. बड़े आदरसे घर ले आया । उसने उन्हें अपने मालिकके घरमे एक पचित्र स्थान पर विराजमान कर दिया और प्रति दिन उनकी पूजा करने लगा। कुछ दिनोके पश्चात्‌ एक मुनि उनके घर पर पधारे। सेठने उन्हें बडे भक्तिभावसे आहार दिया | उसी समय उस ग्वालेने वह आगम उन सुनिको प्रदान किया । उस दानसे मुनि बडे प्रसन्न हुए ओर उन्होंने उन दोनोंको ्रािर्वाद दिया कि यह ग्वाला छेठके घरमें उसके पुत्र रूपमे जन्म लेगा । तब तक सेठके कोई पुत्र नहीं था। झ्रुनिके आशिवादके अनुसार उस ग्वालेने सरके घरमे पुत्र रूपसे जन्म लिया । शरोर बडा होने पर वड एक महान्‌ मुनि और तत्त्व ज्ञानी हुआ। उसका नाम ऊन्द्कन्दाए्चायं था । उनके चारणोके साथ पूर्वं विदेह जानेकी कथा पूर्ववत्‌ वर्णित दे । एक कथा शाख दानके फलके उदाहरण रूपपं चद्यनेमिदत्तके आराधना कथा कोशमे है, जो प्रो० चक्रवर्ती चाली कथासे मिलती हुई है । कथा इस प्रकार ই-_ भरतक्षेत्रमे कुरुसरई गांवमे गोविन्द नामका एक ग्वाला रहता था | एक बार उसने एक जंगलकी गुफामें एक जैन शास्त्र रखा देखा । उसने उस शास्त्रको उठा लिया और पद्‌मनन्दी नामके सुनिको भेटकर दिया। उस शास्त्रकी विशेषता यह थी कि श्रनेक महान्‌ च्राचार्योनि उसे देखा थां रौर इसकी व्याख्या लिखी थी ओर फिर उसे गुफामें रख दिया था! इसीलिए पदूम नन्दि सुनिने भी उसे उसी गुफासें रख दिया। ग्वाला गोविन्द बराबर उसकी पूजा करता रहा । एक दिन उसे व्यालने खा डाला। मर कर वह रचाला निदानवश आसपतिक्रे घरसें उत्पन्न हुआ। बडा होनेपर एक बार उसने पद्स नन्दि झुनिके दर्शन किये और डसे अपने पूर्व जन्मका स्मरण हो आया । उसने जिन दीक्षा धारण कर ली और समाधि पूर्वकं सरण करके राजा कौस्डेश हुआ । चहाँ सी सब सुखोंका परित्याग करके उसने दीक्षा ले ली। उसने जिनदेवकी पूजा की थी और गुरुओंकी सेवा की थी अतः वह श्रुत केवली हुआ । रत्न करंड श्रावकाचार ('छो० ११८) में शाखदानमे 'कोस्डेशका नाम दिया है। और उसकी संस्कृत टीका में उक्त कथा दी है । पं» आशाधरजीने ( वि० सं० ३३०० ) अपने জামাত; অনান্য ~~~ १०-'कोडेश: पुस्तकाचीवितरणविधिनाप्यागमाम्मोधिपारम्‌ ॥




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