जीवन साहित्य | Jeevan Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
930
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९५ जन्माष्टमी
पञ्नात्ताप कर और श्रीद्वरि की शरण में जा।! जानी कंस से
तिरस्कारयुक्त हास्य के साथ उत्तर दिया कि, सम्राट _समर-सूमि सें
पराजित हुए धिना पश्चासाप नहीं करते | धास्तु कह कर
निराश दो नारद चले गये । कस से सोचा, अब तक जे | सम्राट,
নত ने हुए, इसका कारण है उनकी असावधानता: उन्हें पूरी
तरह सावधान रहने का ज्ञान न था । यदि में भी गाफिल रहा तो
खु भा पराजय स्वीकार करना पडेगा ! पर उसका कट अन्देशा
गहा । লা परुप तो सदा विजय के लिये प्रयत्न चरत् है 3 किन्तु
पराजय के लिये तेयार रहता है । हार जाना धुरा नहीं, किन्तु धर्म
ऊ नास पर वशीभूत ही जाने में अकीर्ति है। धम का साम्राज्य
सलादयु-सन्त; बरागी आर देव-ब्राह्मणों के म॒ुचारक हा; सं ता
ठहरा सम्रार | में तो एक शक्ति को ही पहचानता
कस ने ऋर हो कर वसुदेव के सात निरपफराध बालकों का
चथ किया । एृष्ए-जन्म के समय ईद्वरीय लीला चली ओर গণ,
ङ भगवान की जगह कन्या-देदधारी शक्ति कंस के दाथ लगी।
स कस न जमीन पर पछाड़ा, परन्तु शक्ति से कहीं शक्ति थोड़ी
हा मर सकती थी ९ बसुदेव ने श्रीकृष्ण को गप्त रूप से गोकुल
म रक्रा) किन्तु इधर कोको वस्तु शुप्त रखना स्वीकार न थो।
इवरको असिद्ध हो जाने का कौन सा भय था (झा ০? 5९९४९९७)
शक्ति ने अद्वहास कर के भौंचक कस से कहा, तरया शत्र तो
गङ्ल म दिनि दूना ओर रात चौगुना चद् रहा है) सथुरा से
छल चन्दावन बहुत दूर नहीं है, चार पोच कोस भी नदी
कस ने श्राकृष्ण को मार डालने के लिए जितने हो सके » अयत्न '
किये । किन्तु वह यह जान ही न सका कि श्रीकृष्ण का मरण
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