ईशादी नो उपनिषद | Ishadi Nau Upnishd

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Ishadi Nau Upnishd by हरिकृष्णदास गोयन्दका - Harikrishnadas Goyndka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन्य ८ न्न्छ श्२ न््च्छी र-४ नच् देन प्‌ शू न्््प्ट विषय पृष्ठ नामी--परब्रह्म परमात्मादी उनके नाम--प्रणयी तीन माचाओं- के साथ तीनों पादोधी एक़ताका निरुपण सर बेद्चानस्नामक पहले चरणके साथ पहली मात्रा अ कारकी एकता और उसके छानसे सम्पूर्ण भोगोकी प्राततित्प फल... २४र तैजसनामक दूसरे चरणके साथ दूसरी मात्रा उश्कारकी एफकता और उसके नानसे जानपरम्पराके उत्क् और सममावत्री प्राप्तिर्प फल व र४३ प्राज्नामक तीसर चरणके साथ तीसरी मात्रा मर कारकी ए ब्ता और उसके ज्ञानसे सम्पूर्ण जगत्‌का नान तथा. सर्वत्र परत्रह्म दृष्टिस्प फल हे र४ मात्रारहित 2 वारकी परमेश्ररके चोंये चरण--तिर्विभं्र रुपके साथ एकता और उसके शानसे परत्रह्झकी प्रात्तिस्प फल २४४ चान्तिपाठ रुद५ ७ विज ७ ऐत्रेयोपनिषदू उपनिषद्के सम्बन्धम प्राइकवन तथा दास्तिपाठ र४६ प्रयम अध्याय ः प्रथम खण्ड परमात्माक सुष्टिरचनाविपयक प्रथम संकट्पका वर्णन र७ परमात्माकें द्वारा समस लोकोंकी और श्रह्मा तथा अन्य लोक- पालोकी एवं वागादि इन्द्रियो और उनके अधिछ्टातृ-देवताओवी उतत्तिका निरुपण रे र८ द्वितीय खण्ड इन्दियां और उनके अधिएाता देवताओद्वारा वासस्थान और - अन्नकी याचना जप . र५१ परमात्मा द्वारा गा तथा अश्वद्रीरकी रचना और देवताओका उनको पसद न करना न निरर २५२ परमात्माद्ारा सनुप्य-शरीरकी रचना उसे देखकर देवताओका प्रसन्न होना और उसके भीतर अपने-अपने स्थानोमे प्रवेश करना २५२ ९ देवताओंकि अन्नमें क्षुधा और पिपासाको भी माग-प्रदान . २५४ तृतीय खण्ड परमान्माह्ारा अन्नस्चनाका विचार ओर अन्नकी सष्ि -.. _.. २५५




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