भारतीय दृष्टि से विज्ञान शब्द का समन्वय | Bhartiya drishti se vigyan shabd ka samanvay

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Bhartiya drishti se vigyan shabd ka samanvay by मोतीलाल शर्म्मा - Motilal Sharmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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এ सत्तानिवन्धन-अद्य-अतएव इन्द्रियातीत वैसा निरपेत्ष ज्ञान तो सर्वर ही तटस्थ है इन विश्वानुबन्धी विशेष ज्ञानभावों के समतुलन में, जो कि- “श्रत्यस्ताशेपभेद॑ यत्‌-सत्तामात्रगोचरम्‌ बचसामात्ससंवेध् -तजज्ञानं त्क्ष संज्ितम्‌” | इत्यादि रूप से श्रदाज्ञान' नाम से व्यवहृत ह्राद । ते सामान्य ज्ञानात्मक ब्रद्माज्ञान का तो यहाँ प्रसज्ञ ही नहीं है । प्रसज्ञ प्रक्रान्त है विशेषभाबात्मक विश्वानुतस्धी प्राकृतिक विज्ञानभाों का। विशेषभाव ही अनेकभावात्मक बना करता है। अतणएब विशेषता तथा बिविधता- | दोनों अ्रन्ततोगत्त्या समानार्थ भँ परिणत हो जातीं दै । एवं इस दृष्टि | से यद्यपि 'बिरेष ज्ञान विज्ञानं'का 'विविध ज्षानं विज्ञानम' इस लक्षण पर ही पय्येबसान द्वो जाता है. । यद्यपि विशेष-और विविध-दोनों शब्दों में भी | विज्ञानदशया सुसुक्षम भेद है। तथापि उस सीमापर्यन्‍्त अनुधावन करना अप्रासज्ञिक समम कर प्रकृत में विशेषभाष का बैविध्य में हीं अन्तर्भाव मानते हुए केबल मध्यस्थ लक्षण को ह्वी लक्ष्य बना लिया जाता है। “विशेषभावानुगतं-विशेतभावामिन्न॑-विविध॑ ज्ञानमेव विज्ञानम्‌' यही लक्षण बनता है. विज्ञानशव्द का । 'विविध॑ ज्ञानं विज्ञानम! इस लक्षण के सुनते के साथ ही अनिवःय्येरूप से यह जिज्ञासा जागरूक हो. * दी तो पड़ती है कि-क्या-कोई बैसा भी ज्ञान है, जो वैविध्य से शून्य | मानात्त्व से प्रथक्‌ है, किंत्रा विश्वनिबन्धन भेदवांदों से असंस्प्रष्ट है !। जिज्ञासात्मिकां यही सहज अपेज्ञा अपनी सापेक्षता के आकर्षण से | विज्ञान शब्द के हीं द्वारां ज्ञान! शब्द का भी आकर्षण कर लेती है। सापेक्ष विज्ञानशब्द उसी प्रकार अपनी अपेन्षा-पूर्ति के लिए ज्ञान शब्द का आहरण कर ही लेता है, जैसे कि सापेक्ष 'शासितः शब्द म




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