भारतीय हिन्दू मानव और उसकी भावुकता | Bhartiya Hindu Manav Aur Uski Bhavukta

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Bhartiya Hindu Manav Aur Uski Bhavukta by मोतीलाल शर्म्मा - Motilal Sharmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका न प्राणेन नापानेन मर्त्यों जीव ति कश्चन । इतरेण तु जोचन्ति यस्मिन्नेताबुगशरिती ॥ जिस फेन्द्र या मध्ण्स्य प्राण में ऊप्यंगति प्राण भीर 'अधघोगति अरान दोनों की प्रन्यि है, खसफी पारिभापिष सहा व्यान है.। उसो को यहाँ साकेतिक भापा में इतर कद्दा गया रै । प्रायं अपान दोनों उसी फे भय से संचालित होते ह । घौर मी- (मध्ये चामनमामीन स्ये देवा उपासते! । यष फदर या मण्यप्राण॒ या धामन द्वना सराफ मौर धलि्ठ है फ खष्टि फे सव देवषा इसफी उपासना फरते हैं । सी फे ददपम्यिव घन या यत से तर सय पेयो फे यल सन्तुलिघठ होते हैं. । यदद थामनरूपी मध्यप्राण दी समस्त पिश्ष मे पनी रश्मयो से फल कर पिराद्‌ या वैप्णयरूप पारण फरता है ) विप्मएुरूप महाप्राण दी एदयस्य वामन फे रूप में सब प्राणियों फे मीतर प्रतिष्तित है । इसी फे सिये श्दा जाता है-- 'स दि वैष्यवो यदु दामन ” ( शत० ५।२५४ ) हृदयस्थ घामनरूपी पिष्णणु किसी प्रफार अघमानना फे योग्य नदीं है) बही चषिषाल्ली सद परिपूर्ण '्ीर स्पस्थमाथ हे. । जो मानष इख छेनद्रस्य-माथ मे स्थित रदषा ६, षही निष्ठाया मानव हे. । जिसका केन्द्र विचा पी दे, कमी कुछ, कभी फुट सोचता और शाचरण॒ फरता है, षी माघुफ मानष ट । फेमद्र स्थरं दए चिना परिषि या मष्िनामण्डल शुद्ध घन ही नहीं सफता 1 प्वार खयो मे पिम प्रस्तुत प्न्य में नेष्ट प्रकार से यही प्रतिपाथ विपय है कि मानव को अपने उस निप्ठासम्पन्न स्वरूप का परिचय प्राप्ठ हो । आत्मा बुद्धि, मन अं र शरीर इन 'चारों विमृतियें में ात्मा ओर युद्धि फी अलुगत स्थिति फा नाम निष्ठा दै भर मन एव शरीर की 'अनुगत स्मिति फा नाम माधुकता दे. । प्रायः निश्ेल संफ़श्प-विफल्प बाने मनुष्य मन और शरीरानुगत रदते हुए अनेक ख्यापारों में प्रयूत्त होते हैं. । जो बुद्धि मन को '्पने बश में र लेती है, उसी फो धष मापा मे मनीपा कते हं । विस ध्यविषाज्ञी सट घुदधि मे पयव के समान घुष या मरण निष्ठा दोती दे रसे दो घिपणा कहते हैं । वेविकमाया में इसी भरमाखण प्राण के करण हसे '्थिपणा पापतेयो ' कषा जाता है. । _बारम्वार यदद प्रश्न उत्पन्न होता दे कि मारतीय मानय घर्ममीरु दोते हुए भी सर्वया अमि- भूत क्यों है. ? सका ज्ञान आर कर्म इस प्रकार एुषटिव क्यों बना हुआ हे ? इस प्ररन का सान- पोषिव समापान यही ह क़ि मारतीय मानय भस्यन्त मादुक हो गया दै । इसने अपना प्राचीन




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