संघर्ष और विकाश भाग 1 | Sangharsh Aur Vikash Part 1

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Sangharsh Aur Vikash Part 1 by ठाकुरदन्त शर्मा - Thakurdant sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महात्मा गाँघों ६ संस्कृत शिक्षक बड़ सख्त आदमी थे । विद्यार्थियों को घहुतेरा पढ़ा देने का लोभ उन्हें रहा करता । संस्कृत-वरग और फारसी- वगे में एक अकार की प्रतिस्पर्धा रहती । फारसी के सौलवी साहब नरम आदमी थे । विद्यार्थी लोग आपस में बातें करते कि फारसी बड़ी सरल है और मोलवी साइब भी मलें आदमी हैं । विद्यार्थी जितना याद करता है उतने ही पर वे निभा सते हूं । सहज होने की वात से मैं ललचाया और एक दिन फारसी के दरजे में जाकर बेठा । संस्कत-शिक्षक को इससे दुःख हुआ । उन्होंने मुभे बुलाया यह तो सोचों कि तुम किसके लड़के हो ? अपने धर्म की मापा तुम नहीं पढ़ना चाहते ? तुमकों जो कठिनाई हो सो मुमें बताओं | मैं तो समस्त विद्यार्थियों को अच्छी संस्कृत पढ़ाना चाहता हूँ । आगे चल कर तो उसमें रस की घट मिलेंगी । तुमको इस तरह निराश न होना चाहिए । फिर तुम मेरी कक्षा में आकर बेठो मैं शरमिन्‍्दा हुआ | शिक्षक के प्रेस की अवहेलना न कर सका ्याज मेरी आत्म झप्णशंकर मास्टर का उपकार सानती है क्योंकि जितनी संस्कृत उस समय पढ़ी थी यदि उतनी भी न पढ़ा द्ोता तो आज मैं संस्कृत-शास्त्रं का जों आनन्द ले रहा हूँ वह न ले पाता । बल्कि मुझे तो इस वात का पश्चात्ताप रहता हैं कि मैं अधिक संस्कृत न पढ़ सका । क्योंकि आगे चल कर मैंने समका कि किसी भी हिम्दू-वालक को संस्कृत का अच्छा अध्ययन किये विना न रहना चाहिए




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