धर्म और दर्शन | Dharm Aur Darshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri,
श्री पुष्कर मुनि जी महाराज - Shri Pushkar Muni Maharaj
श्री पुष्कर मुनि जी महाराज - Shri Pushkar Muni Maharaj
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri
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श्री पुष्कर मुनि जी महाराज - Shri Pushkar Muni Maharaj
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घर्मं और दशन छ
मन को जो भी अभिराम प्रतीत होता है, वह सब धर्म का ही
फल है #
इस कथन से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि धर्म का सम्बन्ध न
केवल आध्यात्मिक श्रेयस् से है, अपितु हमारे वर्त्तमान जीवन के
साथ भी है ।
घर्मव्याख्या
धर्म शब्द का व्याकरण शास्त्र के अनुसार अर्थ है--घारण करना 1
जो घारण करता है वह धम है ।* 'घृत्र' घातु मे मत्त या “म” प्रत्यय
जोडने पर 'धर्म' शब्द निष्पन्त होता है। जो दुर्गतिपात से प्रारियो
को बचाता है, वह घम है | कणाद के कथनानुसार जिससे अभ्युदय
९ भम्मेण बुलप्यमूदइ धम्मेण य दिव्वरूवसपत्ती।
धम्मेण धणसमिडी, घम्मेण सुवित्यडा वित्ती॥
धम्मो मगतमखल, ओक्षहमउल च सव्वदुक्लाणा ।
धम्मो यलमवि विउल, धम्मो ताणद सर्णच॥
कि जपियण बहुणा, ज ज दीसइ सब्वत्य जियलोए ।
181 मणाभिराम, ते तत धम्मफल सव्व ॥
--समराइच्चकहा
६ धारणाद् धममित्याहु
(त) धारणाद् धम उच्यते 1
महाभारते, कण पव
७ धूमे धारणो, स्प धातामत् प्रत्यया तस्येद र्पम् धम इति)
--ददावं* शिन० घूणि ঘুণ १४
८ धृणष धारण, इत्पश्य धातोमप्रत्ययाम्तस्येद रुपम् घम इति ।
--दणवे० हारि० टश्च, पचर २०
६ गस्मार्जीष रक्तियम्पानिवुमानुषदेवत्वषु प्रपतेत धारयतीति धम,
उक्वञ्प~-
दुमतिप्रसृतान् जीवान्, यस्माद् धारयते ठत 1
धपे ततान् शुमस्यानं तस्माद् धमं इति त्यत ॥
--रगवं° जिन० पूणि० प० १४
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