उपक्रमणिका | Upakramanika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
505
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ऋषभ चरण जैन - Rishabh Charan Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
विपय में वार्तालाप कर रहे होंगे 1--वहाँ से उन्हें जल्दी
नहीं मिल सकतो 17
£ सम्भव है।?
भनिस्यय है, सरथार, श्चौर मद्ाशय डि-फंवरास के साश्
यदौ ोमा । वे काडण्ट-डि-मरविन्त फे साय रहते है,
आअवश्य-ही किसी माटक की चर्चा कर रहे होंगे 1?
“अच्छा, मद्दाशय डि-कण्डरसेद फे विपय में क्या फहते
-यद् तो ज्यासिति शौर गणित के परिदितर यै षते देर
सक्ते १
“हाँ, वे किसी-न-किसी भहन विचार में मग्त हो जायेंगे,
जय उन्हें होश आयमा, तो फम-स-कम राथ पटा देर् तो १
चुकी ट्वोगी । रहे महाशय कगलस्तर, सो वे आजनबी आदस
उन्हें वर्सेड के निमय-कायदों का ज्ञान नहीं; बस उनके लिये
जरूर-ही इन्तज़ार करना पड़िगा 17
“ज्षेक ! तो तुमने मेरे सारे महमानों का वर्णन कर दिया!
सिर्फ महाशय डि्टेवर्नी रद गये 1?
“खिदमतगार ने झुककर कट्ठा--“जी हाँ, मैंने मद
टेवर्नी का नाम इसलिये नहीं लिया, कि ये आपके पुराने दोप
इसलिये शायद ठीक समय पर आजायें। मेरे खयाल में
आपके महमानों के नाम हैं ।?
“हीक; अच्छा, खायेंगे कहाँ 17
“खाने के बडे कमरे में १?
User Reviews
No Reviews | Add Yours...