तत्त्व चिंतामणि भाग 2 | Tattva Chintamani-2

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Tattva Chintamani-2 by श्री शुक्लचन्द्र जी महाराज - Shree Shuklchandra Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीव-तत्त्व (९) तत््व-चिन्तामणि विकलेन्द्रिय के छह भेद (१) इह्वीन्द्रिय के दो भेद-पर्याप्त ओर अपर्याप्त, (२) त्रीन्द्रिय के दो भेद-पर्याप्त और अपर्याप्त, (३) चतुरिन्द्रिय के दो भेद-पर्याप्त और अपर्याप्त, तियं पचेन्दरिय के २० भेद १. जलचर २. स्थलचर ३. खेचर ४. उरपुर (उरपरिसर्ष-थुजयरिसर्प) ५. यजपुर ये पाच सज्ञी और पांच ग्रसन्नो होते हैं तथा ये दश पर्याप्तक आर अपर्याप्तक होते है, इस प्रकार २० भेद होते है । (उत्तराष्ययन ३६] परिभाषा प्र०--जलचर किसे कहते है ? उ०--जो जीव जल मे चलते है, रहते हैं, उन्हे जमचर कहते हे । जैमे--मगर, मत्स्य, कछुआ, ग्राह, सुसुमारादि, इन का कुल (वश) १२॥ साढे वारह लाख करोड दै । प्र०--स्थलचर किसे कहते है ? उ०--जो जीव पृथ्वी (सूमि-जमीन) पर चलते है रहते है, उन्हे स्थलचर कहते है | जेसे, गाय, हाथी, घोड़ा आदि । इनका कुल १० लाख कोड़ का होता है । ये जीव चार प्रकार के टोते ईै-एक सुरा, दो खुरा, गही . पद, सनखपद ।




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