तत्त्व चिंतामणि भाग 2 | Tattva Chintamani-2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री शुक्लचन्द्र जी महाराज - Shree Shuklchandra Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीव-तत्त्व (९) तत््व-चिन्तामणि
विकलेन्द्रिय के छह भेद
(१) इह्वीन्द्रिय के दो भेद-पर्याप्त ओर अपर्याप्त,
(२) त्रीन्द्रिय के दो भेद-पर्याप्त और अपर्याप्त,
(३) चतुरिन्द्रिय के दो भेद-पर्याप्त और अपर्याप्त,
तियं पचेन्दरिय के २० भेद
१. जलचर २. स्थलचर ३. खेचर
४. उरपुर (उरपरिसर्ष-थुजयरिसर्प) ५. यजपुर
ये पाच सज्ञी और पांच ग्रसन्नो होते हैं तथा ये दश पर्याप्तक
आर अपर्याप्तक होते है, इस प्रकार २० भेद होते है ।
(उत्तराष्ययन ३६]
परिभाषा
प्र०--जलचर किसे कहते है ?
उ०--जो जीव जल मे चलते है, रहते हैं, उन्हे जमचर कहते हे ।
जैमे--मगर, मत्स्य, कछुआ, ग्राह, सुसुमारादि, इन का कुल (वश)
१२॥ साढे वारह लाख करोड दै ।
प्र०--स्थलचर किसे कहते है ?
उ०--जो जीव पृथ्वी (सूमि-जमीन) पर चलते है रहते है, उन्हे
स्थलचर कहते है | जेसे, गाय, हाथी, घोड़ा आदि । इनका
कुल १० लाख कोड़ का होता है ।
ये जीव चार प्रकार के टोते ईै-एक सुरा, दो खुरा, गही
. पद, सनखपद ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...