वृहत जैन शब्दार्णव खण्ड 1 | Brihat Jain Shabdanarv khand 1

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Brihat Jain Shabdanarv khand 1  by बिहारी लाल जैन शास्त्री - Bihari Lal Jain Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ १४ ) 1 यष्ट अग सव सपने की माय, सरव समस्पति सव तरवर छाथा,ईखको हिरदय घरकर दैष्ठ ॥ | ঘাঁন ৪ আঘী......॥ ११, एक चोर ( जम्बुकुपार की माता को दुखो देखकर )-- ग़म खायना, घबरायना, तेरा हम से रूस्या दुख जायना | खया रोवे, जलवे, सते जिया, सम ग्वायना, घबरायना ॥ तेरा० ॥ ज्ञर दौटत, धन सम्पन, इस पै लानत, हमको इसकी तनक अच बाह ना, परदाय ना, गृम खाय ना, घबराय ना, तेय दमने कसा दुख जाय भा ॥ भाता मत देर करो चले दिखादो इमको । सखलङ़ उस पुत्र से अब मर कमदो हमक ॥ মুগ্ধ আহা है कि मन फेर सकंगा उनका । ज्ञो न मानेंगे ता में खाथी बनू गा उनका ॥ दु'ब पायता, गम ख्रायना, तू मन में तनक घबरायना ॥ तेरा० ॥ (२) गंद्यात्मक हिन्दी रचना (क) जम्बकुपार नाटक से-- १, सूत्रभार ( स्वयं )-अद्दाभाग्य ঈ आज दमारा उठत उमंग तरगं अपारा॥ ইল ইন লন হুশ্বিন হাই | झानी गुनि सज्जन अवलोई ॥ अद्ठाद्या ! आज इस मंहप में फैंसी शोभा छा रही है, बाद वा ! कैली बद्दार आग्दो है। यहाँ आज कैस फैल विद्धान्‌, क्ञानो ओौर महान पुरुपा का समूह सुशोमितदै, जिन का अपने अपने स्थान पर सुय््य राति से आसन माये बेटना मी, अहा ! कैसा यथाच्त है। | ( उपस्थित मंडल्यी से )--मद्दाशयगण '! आप जानते हैं यह संसार असखार है। इस का वार हैं न पार है। यहाँ सदा मौत का गर्म बाज़ार है। फिर इसमें अधिक जी उल- झाना निपट बेकार है ॥ जो इसमें जी उल्झाते हैं, मनुप्य आयु को बेकार गंवाते हैं | पीछे पक़ताते हैं और अन्त समय इस दुनिया से यू दो दाथ पसारें चले जाते है। सम्य- गण ! रूध्मी स्वभाव दी से चंचल है। इसके स्थिर रहने का भरोसा घड़ी है न एक पल ই। জলা में भला कौन सादस के साथ कद्द सकता है दि यद अटल है । यह इन्द्रियों के घिषय भोग भोगते समय सो कटने मात्र रसोले हैँ पर निद्चय जानिये अपनी तासीर दिखाने में काले नाग से भी कहीं अधिक विपीलहे ॥ अीतत्य पानी के बुखवुलेर समान दै। जिसको इस रहस्य का यथार्थ शान है उसी का निरन्तर परमात्मा स ध्यान दै। वास्तव में ऐसे दी मद्दान पुरुषों का फिर सदा के छिबे कल्याण है | मान्यबर महाशयों ! आपने नाटक तो बद्भुत से देखे द्वांगे पर पाप मोल लेकर दाम অবশ হু फेंके होंगे | किन्तु इस समय जो नाटक आपको दिखाया जायमा, आशा है कि उससे आंप में से हर व्यक्ति परम आतन्द्‌ उठायगा | संसार की अछारता और लक्ष्मी आदि की क्षणक्ता जो इस समय थो से शब्दों में आपको दर्शाई है उसी की हू बह तसवीर खींचकर इस अमूल्य नाटक में दिखाई है ज्ञिख़मे आपका खर्च पक पेसा है न पाई है। कहिये मद्दाशयगण ! कैसी उपयोगी बात आपको सुनाई है। হেত জেয 25 তালে 90855835759 তারা 0 গজ উওর লাজ.




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