समग्र ग्राम - सेवा की ओर | Samgra Garam Seva Ki Or

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Samgra Garam Seva Ki Or by धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिहादइलोकन ; १: असय-आप्रस, बलरामपुर १ ६-०- ०१५ प्रिय आना बहन १५ साल वीत्त गये। सन्‌ ?४२ के जेल-प्रवास से ग्राम-सेचा की आखिरी कहानी लिख भेजी थी | पिछले १५ सालो से देश ओर दुनिया में इतने अधिक परिवर्तन हो गये कि ऐसा लगता है, सानी सेकडो वर्ष वीत गये | देग आजाद हुआ। लोगो ने वडी घूमधाम से आजादी की खुणियों सनायी | फिर कुछ दिन इसी खणी से मस्त रहे । उसके बाद लोग एक दूसरे की शिकायत करने लगे, जैसे किसी हारी हुई टीम के खिलाडी ण्वि करते है | देखते-देखते भारत के आसपास के ठेणगो मे भी आजादी की लहर उठी | सारी एशिया मे नव-जीवन की नव-चेतना का सचार हुआ ओर चारो तरफ राष्ट्र-निर्माण की योजनाओं की धूम मची | एशिया स वह धूम आज भी मची हुई है। नवचेतना एशिया के ठेगो की आजादी से पश्चिमी देशों के लिए जोषण का अवसर घटता चला गया | फल- स्वरूप उनके जीवन-सघर्ष की समस्या उठ खडी हुईं | इससे उन देनो की आपसी कशसकश बढी | युद्ध तो समास हुआ, पर इस कममक्न ने शान्ति स्थापित नहीं होने गी | युद्ध के दिनों मे जो राष्ट्र मित्र-राष्ट्र थे, वे ही एक-दूसरे कै साथ होड करने स्मे । फिर भी सबको शान्ति की चाह थी । चह इसलिए नदी कि वे नान्तिवादी या गान्ति-प्रिय हयो गये ये, विकि इसलिए, कि युद्ध की समाप्ति इतिहास की एक विशिष्ट घटना से हुई |




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