समग्र ग्राम - सेवा की ओर | Samgra Garam Seva Ki Or
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिहादइलोकन ; १:
असय-आप्रस, बलरामपुर
१ ६-०- ०१५
प्रिय आना बहन
१५ साल वीत्त गये। सन् ?४२ के जेल-प्रवास से ग्राम-सेचा की
आखिरी कहानी लिख भेजी थी | पिछले १५ सालो से देश ओर दुनिया
में इतने अधिक परिवर्तन हो गये कि ऐसा लगता है, सानी सेकडो वर्ष
वीत गये | देग आजाद हुआ। लोगो ने वडी घूमधाम से आजादी की
खुणियों सनायी | फिर कुछ दिन इसी खणी से मस्त रहे । उसके बाद
लोग एक दूसरे की शिकायत करने लगे, जैसे किसी हारी हुई टीम के
खिलाडी ण्वि करते है |
देखते-देखते भारत के आसपास के ठेणगो मे भी आजादी की लहर
उठी | सारी एशिया मे नव-जीवन की नव-चेतना का सचार हुआ ओर
चारो तरफ राष्ट्र-निर्माण की योजनाओं की धूम मची |
एशिया स वह धूम आज भी मची हुई है।
नवचेतना एशिया के ठेगो की आजादी से पश्चिमी देशों
के लिए जोषण का अवसर घटता चला गया | फल-
स्वरूप उनके जीवन-सघर्ष की समस्या उठ खडी हुईं | इससे उन देनो की
आपसी कशसकश बढी | युद्ध तो समास हुआ, पर इस कममक्न ने
शान्ति स्थापित नहीं होने गी | युद्ध के दिनों मे जो राष्ट्र मित्र-राष्ट्र थे, वे ही
एक-दूसरे कै साथ होड करने स्मे । फिर भी सबको शान्ति की चाह थी ।
चह इसलिए नदी कि वे नान्तिवादी या गान्ति-प्रिय हयो गये ये, विकि
इसलिए, कि युद्ध की समाप्ति इतिहास की एक विशिष्ट घटना से हुई |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...