सिद्धान्त समीक्षा (भाग २) | Siddhant Samiksha (Bhaag - 2)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११०
तो जरूर होवेगा परन्तु उस स्वाद में स्वस्थ अवस्था के से स्वाद
से मिन्नता अवश्य पाई जायंगी | इसी प्रकार नाक दबाकर जर
पीओ तत्र जल का रस ज्ञान होगा, परन्तु नांक खोलकर पीने से
जो ज्ञान होता है वह न होगा |-इससे यह तो स्पष्ट है कि
सयोगी ज्ञान अनेक होना स्वाभाविक दै, जब कि एक क्षरीर म
एक ही पंचेन्द्रिय सम्पन्न आत्मा है | यह करपना आपकी द्रव्यत्री
को मोक्ष अधिकार नहीं दिला सकती ।
में एक बात और भी इस सम्बन्ध भें लिखना चाहता ई
कि प्रोफेसर साव ने केवल भागम वाक्य ही बताकर सीमुक्ति
का समथेन किया -द्वो यह्ष बात नहीं है। उन्होंने काफी युक्तिवाद
का संग्रद्न किया है. जो कि उनकी खुद की कल्पनायें हैं जिनका
निराकरण ऊपर किया जा चुका हि | अब में उन तकों का उल्लेख
किये बिना नहीं। रह सकता जो आचाये प्रवर तार्किकन्सूय সমান
चन्द्रजी ने अपने लिखे हुए प्रमेय-कमल-मातैड में दिये हैं (१)
भागम प्रमाण उन्ददोंने यद्द दिया है ( देखिये पुस्तकाकार प्रकाशित
मातंड का ३३३ वां पेज ) “ नाप्यागमाव् , तन्मुक्तिप्रतिपादकस्या-
त्यामावात् अथे---आगम से भी द्रव्य ख्ी का मोक्ष नहीं सिद्ध হী
सकता, क्योंकि ज्री को मोक्ष बतछाने वाढे आगम का অমান है ।
गाथा-- पुंवेदं चेदंता जे पुरिसा खवगसेढिमारूढ़ा ॥
सेसोद्येण वि तद्दा झाणुवजुत्ता य ते दु सिज्झेति ॥ १॥
उपरोक्त आचीन गाथा स्फुट रुप से द्वव्य ञ्ली मुक्ति की
निषेधक है । (१) पुंबेद द्वी मोक्ष का प्रयोजक है । (र) क्ली
वेद नाम कम अशुभ कम है जिपे मोक्ष माने वाढा जीव प्रवैभव में
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