हमारी राजनैतिक समस्याएं | Humare Rajnaitik Samasyaen

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Humare Rajnaitik Samasyaen by शान्तिप्रसाद वर्मा - Shantiprasad Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-प्रवेश জু इस चरम माग से एक अच्छा परिणाम भी निकला | एक ओर तो यह प्रगट हो गया कि एक श्रल्प-सख्यक समुदाय की कंदरता उसे किस सीमा तक ले जा सकती है, दूसरी ओर यह मी स्पष्ट होगया कि मुसलमानों के विरेध के पोछे एक तांखापन और तीमता भी है, और उसके कारणों का विश्लेपण कर लेने, ओर जहा तक हो सके उनकी उचित मागों को स्वाकृत कर लेने और श्रन्य शिकायतों के सम्त्रध में उचित वैधानिक आश्वासन देने की आवश्यकता है | प्रजातत्न में तो पारस्परिक सहानुभूति और एक-दूसरे के दृष्टिकोण को सम- भने की क्षमठा का होना बडा आवश्यक है| हम पर, जो इस देश में प्रजावत्र की स्थापना देखने के लिए उत्सुक हैं, यह बाध्यता है कि हम मुसलमानों की माग से खोझ उठने के बदले उसके मनोविज्ञान की गहराई में जाय। पाकिस्तान पके फोर्ड की दरह एक गलत और सघातक चीज हो सकती है, पर हमारी राजनीति के अस्वास्थ्य में हो तो उसका जन्म हुआ है न? पाकिस्तान के सम्बन्ध मे क्यो मुसलमानों का इतना अधिक आग्रह है, ओर क्यों यह श्राग्नट प्रबलतर होता जा रहा है ? कौनसी शक्तिया है जो इस आग्रह के पीछे काम कर रही है, और उसे प्रेरणा और प्रोत्साहन पहुचा रही हैं ? उन शक्तियों का जान लेना, यदि हम भारत की एकता के आधार पर एक प्रुज़ातन्त्र की स्थापना करना चाहते हैं, नितान्त आवश्यक है | यह जानने के लिए, हमे इतिहास की गहराई में जाना पडेगा । हिन्दू ओर मुसलमान समाज क्या हमेशा एक दूसरे से इसी तरद सिच रहे या कभी उनमें मेलजोल भी होगया था। यदि मेलजोल हुआ था तो वह किस सीमा तक पहुचा था, ओर वह क्यो अपने को कायम न रख सका १ कोन से ऐसे कारण थे जि होंने दो महान्‌ सस्कृतियो को एक शानदार समन्वय से पथभ्रष्ट कर दिया ? उसमे विदेशी शासन की कूटनीतिनवा का परमाव कितना भा ओर कितना था हमारी अपनी सामाजिक कमियों का उत्तरदायित्व ! मुसलमानों द्वारा पाकिस्तान की मांग ने इन सब प्रश्नों का वैज्ञानिक उत्तर दृढ़ निकालने पर हमें विवश कर दिया है। , कुछ लोग मुसलमानों के इस रवैये से खीक कर उनसे अपना राजनैतिक सहयोग ही खींच लेना चाहते हैं। वह राष्ट्रीय आन्दोलन को ही इतना सशक्त बनाना चाहते हैं. कि मुसलमानों के सहयोग के बिना, अथवा जरूरी हुआ तो असहयोग के साथ मी, अग्रेजों के अनिच्छुक हाथों से शासन-सत्ता छीन ली जाय | यह विश्वास उस मनोदत्ति से भो, जिसने पाकिस्तान को जन्‍म दिया, अधिक मयछूर है । पाकिस्तान यदि निराशा की पुकार है, तो यह धारणा एक वौखलाहट की अभिव्यक्ति. है । हमारी राष्ट्रीयवा के विकास में




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