पद्मसिंह शर्मा के पत्र | Padma Singh Sharma Ke Patra

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बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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हरिशंकर शर्मा 'हरीश ' - Harishankar Sharma 'Harish'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ पद्मसिह शर्मा के पत्र प्रविष्ट क्रिये जायें । वे साहित्य-शरीर की सुदृढ़ रीढ़ का काम देंगे। उनसे पाठकों की जानकारी बढ़ेगी भर वे श्रनुप्राणित भी होगे । हिन्दी वालों के लिए यह्‌ कायं भ्रनिवाय होना चाहिए । एक बात और है, लोगों में पत्रों की उपयोगिता के ग्रनसार उन्हें संवारकर रखने की प्रवृत्ति जागहक होनी चाहिए। साधारणतः पत्र पढ़कर, उन्हें रही खाते में फेंक देने को हमारी भ्रादत है । यह्‌ ठीक नहीं है। यथासम्भव, स्थायी उपयोगिता के पत्रों को सुरक्षित रखना ज़रूरी हैं । कोई उदीयमान नवयुवक या विद्यार्थी कब कितना महान्‌ परुष वन जायगा, इसे कौन जानता है । वड्‌ प्रादमियों के बात्य-काल क लिखे पत्र भी बहुत महत्वपूणे बन जाते हूं । कविर्न सत्यनारायण के स्वगेवास के परचात्‌ बालक या विदार्थी सत्यनारायण की लिखी चिटिय्यों का मूल्य या महत्त्व बढ़ जाना स्वाभाविक था । क्योंकि उनकी जीवनी के लिए वे भ्रति आवश्यक समभी गईं। গা तुलसीदास, सूरदास, कबीर, नज़ीर भ्रादि के पत्र किसी के पास हों तो वे लाखों की सम्पत्ति से कम न समभे जायेंगे । चिटि्ठयों में लेखक की हस्तलिपि श्र उसके व्यक्तित्व के दर्शन तो हो जाते हैं परन्तु साक्षात्‌ शरीर-पिण्ड के दशन नहीं होते। इसलिए जिस व्यक्ति के पत्रों का संग्रह प्रकाशित हो उसके सभी उपलब्ध चित्र भी प्रकाशित किये जाये। অন্‌, অন্‌ का भी उल्लेख रहे । यदि किसी पत्र के सम्बन्ध में कोई घटना व्याख्या की श्रपेक्षा रखती हो तो वह भी कर दी जाय । हाँ, पत्रों की जिन बातों से कटता, भ्रश्नद्धा या ग्ररचि उत्पन्त होने की झाशंका हो, उनके न प्रकाशित करने में ही हित है । चिट्ठियों की उपयोगिता और महत्ता के सम्बन्ध में ऊपर कुछ पंवितयाँ लिखी गई हैं | आशा है, हिन्दी संसार उन पर विचार करेगा। शंकर-सदन लोहामण्डी, आगरा हरिशंकर शर्मा




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