बीसवीं सदी का महान संत विनोबा | Bisavi Sadi Ka Mahan Sant Vinoba

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Book Image : बीसवीं सदी का महान संत विनोबा  - Bisavi Sadi Ka Mahan Sant Vinoba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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» + 49 “बेटा विन्या, जो आनन्द तेरे हाथ से बने नाग से पूजा करने द में आता है, वो किसी और में नहीं ।” यह था प्यार माँ बेटे का । भक्ति भाव बचपन में विनोबा जी अपनी माँ, दादा, दादी के साथ गगोदा में रहते थे, उनके पिता नरहरि राव, बड़ोदा में थे, वे वर्ष में कभी-कभी गगोदा आ जाते, एक बारजेसे ही उनके पिता घर पर आए तो माँ रुक्मिणी देवी ने अपने बेटेसेकहा-- देखो विन्या, आज तुम्हारे पिताजी तुम्हारे लिए शहूर से बहत सारी मिठाइयां लेकर आये हैँ । विनोबा जी और बच्चों की भाँति मिठाई का नाम सुनते हो बड़े खुश हुए और गए भागे-भागे अपने पिताजी के पास, नर- हरि ने अपने बेटे को एक बड़ा सा पेकट दे दिया, परन्तु उसमे से मिठाई के स्थान पर निकला, रामायण, महाभारत, और भागवत्‌'''। “विनोबा जी, उन पुस्तकों को लेकर भागे-भागे अपनी माँके पास गये ओर बोले, देखो माँ, पिताजी मेरे लिये कंसी मिठाइयां लाये हैं। माँ ने बड़े प्यार से, उन पुस्तकों को देखा और बोली बेटा, यह तो धर्म ज्ञान है, यह तो जीवन की सबसे बड़ी मिठाई है, यही असली जीवन है। विनोबा ने माँ की बातों को ध्यान से सुना, उनके मन में तो पहले से ही भक्ति-भाव का सागर ठाठे मार रहा था। यह तो एक नई लहर थी जो उन्हें ज्ञान मार्ग की ओर ले जा रही थी।




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