हमारे नाटककार | Hamare Natakkaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट हमारे नाटककार १७, अंधेर नगरी :'' ** १६३८ १८. सती प्रताप : १६४० সেও) $ ६, नवमल्लिक : (अ० अभ्र) २०. मृच्छकटिक :' “ˆ (अ०अग्नम०) उपयुक्त सूची में श्र०, अ्रपूर्ण का और अप्र०, अ्रप्रकाशित का द्योतक है | मच्छुकटिकः अप्राप्प है, शेष सभी प्राप्य हैं। इन समस्त नाटकों को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं जो इस प्रकार हैं :-- (१) मौलिक --प्रवास, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्य हरि- श्चन्द्र, प्रेमनोगिनी, विषस्य विष्मोषधम्‌, श्रीचन्द्रावली, भारत-जननी, भारत-दुदंशा, नीलदेवी, अंधेरनगरी, सती-प्रताप और नवमल्लिका | (२) अनूदित--रत्नीवली, पा्खंडविडंबन, धनंजय-विजय, कपूर मञ्जरी, मुद्रा-राक्षस, दुलभ बन्धु ओर म्च्छुकटिक । इन नाठकों में से र्नावली, धनंजय-विजय, पाखंड-विडंबन, मुद्रा-राक्षस ओर मृच्छ- कटिक संस्कृत से, कपूरमञ्जरी प्राकृत से श्रौर दुलभ बन्धु अँगरेजी से अनूदित हैं। (३) रूपान्तरित--विद्यासुन्द्र बड़ला से रूपान्तरित है । शैली की दृष्टि से समस्त नाटकों का वर्गीकरण इस प्रकार है ;--- (१) नाटक- प्रवास, विद्यासुन्दर, सत्य हरिश्चन्द्र, मुद्रा-राक्षुस, दुलभ बन्धु, नवमल्लिका शरोर मृच्छुकटिक । (२) नाटिका--रत्नावली, श्रीचन्द्रावली और प्रेमजोगिनी । (३) प्रहसन--अंधेरनगरी और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति | (४) गीति रूपक--नीलदेवी ओर सती-प्रताप । (५४) रूपक--पाखंड-विडंबन | (६) लास्यरूपक--भारत-दुदंशा । (७) भाण--विषस्य विषमोषधम्‌ । (८) नाव्य गीत-भारत-जननी । (६) ब्यायोग--धनं जय-विजय | (१०) सहक--कपू रमझ्नरी ।




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