कर्म - साधना | Karm Sadhana

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Karm Sadhana by रामसागर शास्त्री - Ramsagar Shastriवृंदावनलाल वर्मा - Vrindavan Lal Verma

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रामसागर शास्त्री - Ramsagar Shastri

लेखक-परिचय
नाम - श्री पंडित रामसागर शास्त्री
पिता नाम - श्री पंडित बेनीप्रसाद मिश्र
जन्म-तिथि 26-12-1926
जन्मस्थान - ग्राम पो० गौरी, रीवा (म०प्र०)
शिक्षा - वाराणसी में संस्कृत एवं हिन्दी का अध्ययन
कार्यवृत्त - विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अध्यापन
संप्रति - अध्ययन एवं लेखन
विन्ध्य-क्षेत्र के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामसागर शास्त्री जी की उत्कृष्ट रचनाओं के लिए विन्ध्यप्रदेश एवं मध्य-प्रदेश शासन द्वारा 4 पुस्तकें पुरस्कृत की गई
(लाल पुरस्कार 1953),(ठाकुर पुरस्कार 1953),
(व्यास पुरस्कार 1954),(पद्माकर पुरस्कार 1956)
इसके अलावा बघेली रचना के लिए अद्भुत योगदान के कारण वर्ष 1995 में बघेली रचना

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वृन्दावनलाल वर्मा -Vrindavanlal Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ कम-साधना सर्वसाधा रण से लेकर जगतू्‌ विख्यात नृपति तक भी अपने बच्चों को न्रिकालज्ञ महरषियों के श्राश्नम में छोडकर अपने उत्तरदायित्व को सफल बनाते थे। वे उन्हे महलो में रखकर लालन-पालन के साथ ज्ञान-वृद्धि नही कर सकते थे । इन्ही महर्षियों के आश्रमो से वे प्रकाण्ड विद्वान हौकर निकलते थे, जिनका লাল भ्राज भगवान्‌ भास्कर के समान देदीप्यमान है और भविष्य मे भी ऐसा ही रहेगा । साथ ही भारत का एक-एक बच्चा उन्ही महापुरुषो के ताम पर अभिमानत करता है। किन्तु वर्तमान युग के मॉ-बाप श्रपने इस पुनीत कतंव्य की ओर कम ध्यान देते है, यदि प्रयत्न भी करते ह तो श्रस्कृत 1 >< >< >< शान्ति पर माँ-बाप दोनो का भार था। र्याद श्रपना ही भार होता तो वह उचित रीति से वहन कर सकती थी, किन्तु एक रमणी को भार के वहन करने में पथ-विचलित होने की आशका रहती है, और स्वाभाविक भी है । शान्ति को अपने कतंव्य में सफल होने की आशा न थी, सफलता के मार्ग॑-ददोक क़्म्नाप्त हो चके थे। उसे अपने पतिदेव की विद्वत्ता पर पुरं না ए । श्रौर बच्चो के लिए भी ऐसा ही सोचती थी । पर ग्रभागे कसि करयं मे सफल नही होते । इस चिता में शान्ति को एक क्षण भी चैन नही पडता था । बच्चो को भ्रसहाय तथा मूख देखने की उसने स्वप्न मे भी कल्पन न की थी, किन्तु भाग्य की विडम्बनां उसके स्वप्नो को कब साकार देखं सकती थी ? १ २; गिरीश श्राठ वर्ष समाप्त कर नवे में प्रवेश कर चुका था | छोटा भाई হাল श्रभी पाँचवे वर्ष को भी पूर्ण नहीं कर पाया था। दोनो बडे प्रेम से खेलते-कूदते और मौज उडाते थे उन्हे किसी सासारिक वस्तु की चिन्ता न थी।




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