इस्लाम - धर्म की रुपरेखा | Islaam Dharm Kii Rooprekhaa

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Islaam Dharm Kii Rooprekhaa by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुहम्मद्‌-जन्म दिया कि में कद दिन का भूखा हूँ कुड खाना मिलने को आशा से आया हूँ । इस पर अमह ने अपने साथियों को आज्ञा दो कि इसको भी श्राग में डाल दो | कोमल शिशुओं को लक्ष्य बनाकर तीर मारना असह्य पोड़ा देंने के लिये एक-एक अज्ञ को थोड़/-थोड़ा करके काटना शत्रु के मुर्दों की नाक-कान काट डालना यहाँ तक कि उनके कनेजें को खा जाना इत्यादि उस समय के अनेक ऋए कम उनकी चृशं पता के परिचायक थे । सुदम्मद्‌-जन्म ऐसे अन्घधकार के सप्तय अरब के प्रधान नगर बक्का सक्क में अब्दुल्मतल्लब के पुत्र अब्दुलाह की भार्या मना के गम से स्वनामघन्य महात्मा मुडम्मद ६१७ विक्रम सम्बत्‌ में उत्पन्न हुए । इनका वंश वश के नाम से प्रसिद्ध था । जब अभी यह ग् हा में थे कि इनके पिता स्वर्गबासी हुए । माता और पितामह का बालक पर असाधारण स्नेह था । एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने वाले बदूदू लोगों की ख़ियों को पालने के लिये अपने बच्चा को दे देना मक्का के नागरिकों को प्रथा थो एक समय साद बंश का एक बदुदू स्त्रो हलामा मक्का में आई | उसको कोई और बच्चा नहीं मिला था जिससे जब घनहोन उामना ने अपने पुत्र को सौंपने को कहा तो उसने यह समझ कर स्वीकार कर लिया फि खालो हाथ जाने से जो दी कुछ प्ले पड़ जाय वहीं अच्छा । हलोमा ने एक मास के शिशु मुहम्मद को लेकर अपने डेरे को प्रस्थान किया । इस प्रकार १५उदद के युद्ध में दविन्द नामक स्त्री ने इमूजा मर सुडम्मर के सहायक के कलेजे को काटकर खाया था ।




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