चरचा - शतक सुगम हिंदीटीका सहित | Charcha - Shatak Sugam Hindi Tika Sahit
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, पौराणिक / Mythological

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.17 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मूठ, पंक्ति.
छ
द्पै
०९
११२
कै११
१२१
है है
१२५
१९५
१९९
१३९३
न
न रण
युद्ध, युद्ध,
( अहावका वावठेपनका ) .... ( वावढेपनका
इनमेंसे अनादि मिथ्यादधी जीवके इनमेंसि सम्पग्मिस्याल
सम्यग्मिथ्यात्व
उ्प्यपर्याप्क इतर निगोद जीवोंके लब्प्यपर्याप्तक जौोंके
बारहवें शुणस्थान तेरहवें गुणस्थान
५. आठ अदेश हैं । उनसे साठ प्रदेश हैं। उन ाठ
पद
प्रदेशोंको अपने शरी
रके आठ मध्य प्रदेश
बनाकर जघन्य भव
गाइनाकों घारण करके
उतन्त हो तथा उसी
भवगाहनाकों. छेकर
जितने उसके आतम+
श्रदेश हैं उतनी ही वार
जन्म मरण करे । इसके
वाद उनसे
गुणस्थानमें शुणस्थानसे
तो उस समय मरणते पदले ही. तो चोधे गुणस्थानमें भाता
छपरसे गिरकर एक धार तो... दे अयांत मरणसमद
चौथे गुणस्थानमें आता दै !
सर्याद् अन्समय
थीर फिर देवगतिंको आर देवगतिकों
६. कार्माण थोगकी व्युच्छित्तिं ... कामांगयोग
होती है होते हैं।
स्वाधितिथि सर्वार्थतिद्धि
चौदद गुणस्थानोंमें चौतीस भाव। चौदह गुण्थानोंगें चौतीस
मावोंकी ब्युच्छिति ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...