प्रवचनसार प्रवचन नवम भाग | Pravachansaar Pravachan Nawam Bhaag

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Book Image : प्रवचनसार प्रवचन नवम भाग  - Pravachansaar Pravachan Nawam Bhaag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाथा २०१, दि० १२-५-६३ | [७ विश्वास न करो । ये सव संकटोंके ही कारण हैं। पूर्व कालमें भी महायुरुपों ने इस धन वैभव राज्यके पीछे अनेक संकट सहे । कौरव और पाण्डवोंमें युद्ध क्यों छिड़ा ? लाखोंकी जान वहाँ क्‍यों गयीं ? केवल राज्य वैभवकी लिप्सा के पीछे । । परिग्रहके संगमे महापुरपके भी आपन्नता :--भगवान श्र रामचल्जी जिनके अलौकिक पुण्य था, जो अन्तमें मुक्त हुए, वे शव सिद्ध भगवान हैं, वे रामचन्द्रजी भी जवतक विरक्त नहीं हुए, परिग्रह और वैभवके राज्यमें उनकी कुछभी जबतक बुद्धि रही तवतक उन्होंने कितने बड़े-बड़े संकट सहे । राज्याभिपेक होने को है, कि लो, थोड़े समय बाद वन जाना पड़ रहा है, वनमें धरम रहे हैं। कहीं तो श्रानन्द पाया और कहीं क्लेश पाया । कहीं मनमाने भोजनका योग रहा और कहीं क्षुधाकी वेदना सही। वनके दुःखों का क्या कोई पार है, जहाँ भयावह पश्मुवोंका भी चीत्कार है । सीताहरण का क्लेण :--किसी जगह रावणने सीताजीके रूप को देखकर मोहित होकर छल वलसे सीताका हरण किया । देखो वहाँ भी स्‍त्री हरे जानेका महाक्लेश । कितना क्लेण हो गया कवियोंने तो यहाँ तक वर्णन कर दिया कि श्रीराम पशुपक्षियोसे भी पूछते फिरे कि कहीं तुमने मेरी सीताको देखा है। खैर इस प्रसंग में भी वहुत दौड़ धूप करनेपर सीताजी का पता लग जाता है। सीताजी लंकामें रावणुके वागमें ठहरी थी। सीताजी को लानेके लिए रामचन्द्रजी ने सेना जोड़ी, राजा महाराजाञ्रोंने लड़ाईमें सहायताके लिए अपना सर्वस्व लगाया | इस लड़ाईके प्रसंगमें कितनी ही वार हारते और जीतते हुए दिखाई देते हैं 1 अआतृविषत्तिका क्लेश :--संग्राममें रावणशने लक्ष्मणके शक्ति मारी भगवान रामचन्द्रजी के लिए वह वन भी महल था। उन्हें अपने भ दद्ष्मणके वलका महान्‌ सहारा था। जो भक्तकी तरह भक्ति कर रः हो, जिसने सीताजी के चरणोंमें ही दृप्टि रखी हो, उस भाईके जब शक्ति € गई, भाई भृतप्राय होगया उस समयके क्लेज देखो । खेर वहभी वात निपटी किसी प्रकोर क्लेश दूर हुए? उसके बाद फिर युद्ध हुआ । विजय हु सीताजी को लेकर घर आए । प्रपवादका क्लेश :--मैया, बड़े पुरुषोंके द्वारा उपद्रव हों तो उसः मुकावला करनेमें उतने क्लेश नहीं होते, किन्तु एक धोवीके हारा उनको ए विचित्र क्लेश और हो जाता हैं। अफवाह उड़ा दिया सीता भी तो रावण




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