सामान्य भाषा विज्ञान | Samanya Bhasa Vigyan

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Samanya Bhasa Vigyan by बाबूराम सक्सेना -Baburam Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वाक्य में परस्पर भेदाभंद (९१) तुमंत और तिष्ठादि-प्रत्यंकान्त হা ( १५ ) (७९); ` (ख) -सम्बन्धततत्व का अथंतत्व भे ` जुड़कर उसी का अंग हो जाना (७३); (ग) जं -त्व कौ ध्वनियों में परिवतंनःकर देना (७३); (ष) অধীনত কী च्वनियो में ध्वनिगुण का भेद कर देना (७३); “(डु). अर्थ-तत्व- को अविक्ृत छोड़ देना (७४); (च) अर्थतत्त्वू को वाक्यांश, में विशेष स्थान पर ही. रखना. (७४)। प्रत्येक भाषा उपरिलिखित.उपायों, में से एक. या अमेकी उपायों को 'ग्रहण करती है (७४-७५) | पद या, झन््द का प्राचोन (७५) तथा अर्वाचीन (७५-७६) रक्षण। ध्वन्यातंमक तथा व्याकरणात्मक शब्द .(७६) ॥ तेरहबाँ अध्याय--पदविकास... ...... . .. पृष्ठ ७७-.८८ `, वाक्य दवारा उदूबोधित अयं का विलेषण प्रत्येक भाषा में किन्हीं घाराओं में होता है और ये धाराएँ सम्बन्धतत्त्वों द्वारा निर्धारित होती हैं, (७७) जो कि निम्नलिखित भावों को प्रायः प्रकट करते हे--(क) लिंग, . पुंस्लिजू, स्वलिङ्ग मौर नपुंसक किङ्ग, पर হ্যা नैसगिक पृर्षत्वादि से.असंम्बद्धे होता: (७८) अचेतन वं चेतने पवां (७९-८०); {खं} कचनेकेवचन द्विवचनं ओर बहवचनं तथां व्यवितवाचक या समूहवोचक शब्द (८०-८१) ; (ग) काल--वर्तमान और उसकी सहायता से भविष्य तया भूतकाल (८१-८२) ; (घ) प्रेरणायंक आदि--संस्कृत के दस गण आदि (८२-८३); (डू) वाच्य-- कतृ, कमं बोर माव (८३-८४); (च) पद--परस्मपद ओर आतत्मंनेंदः (८८); (ङ) वृत्ति (८४); (ज) विमक्ति-प्रयमादि बौर हिन्दी में विकारी तथाः अविकारी (८४८५) परसग (८५) ; . (फ) कारक (८६) ।. के घाराएँ नतौ नैसगिक हैन किन्हीं ताकिक सिद्धान्तो पर निर्भर. (८६) ; न अछ ४. और न. सब भाषालों मे .एकःसीः (८७) । ध्वनिविकास की भाति इसको विकासि अनायासं ओरं अनजोन भे होता रहता हँ (८८) ॥ चौदहवां अध्याय---पद॒व्यास्या:<--. ८«-+०एघ्ड-८९८- केक: वैयाकरणुकुत पद-ब्याब्याएं (८९) कई समुह्चयादि बोधक, परसग और (4৭-০) मो (विशेषण के: ১১১ अभेद (९०), संजा गौर क्िया-में भेद (६०-९१), व्यापोशण्ेत्मक तथा संज्ञात्मक- কামর ক मूल में होता (९२); गुवाक পু एकता (९३)॥ ..




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