भंवर गीत | Bhanvar Geet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ १४ ॥ आह्‌. दकारी गुंफन हुमा कि लोक में नंददास के बारे में यह उक्ति ही चल पड़ी है कि--और सब गढ़िया, नंददास जड़िया । भंवरगीत में नंददास का यही जडिया खूप तकंवद्ध स्वादो ओर गोपियोंके भावोन्माद मे उभर आया ই। शुद्धाद्रत दशन वल्लभाचार्यजी द्वारा प्रतिपादित दाशंचनिक मत शुद्धाद्रंतवादके नाम से अभिहित होता है। इसके आधारभूत ग्रंथ चार हैं- १. वेद ( ब्राह्मण सहित ), २. गीता, ३. वेदान्त-सूत्र और ४. श्री मदभागवत । इन्हें शुद्धाद्रं तवाद के मुल-स्रोत या प्रस्थान चतुष्टय भी कहा जाता है । प्रस्थान चतुष्टय के अनुसार ब्रहम में सत्‌, चित ओर आनंद तीनों गुण विद्यमान रहते हैं किन्तु जीव या चेतन में सत्‌ और चित्‌ का आविर्भाव और आनन्द का तिरोभाव होता है। जड़ में केवल सत्‌ का आविर्भाव तथा चित्‌ और आनंद का तिरोभाव.होता है । सत्‌, चित्‌ आनंदयुक्त ब्रह्य समस्त विरोधी धर्मो काञागारहै। उसमें उक्त तीन गुणों के अतिरिक्त ऐश्वर्य, वीये, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य ये छः अन्य युण भी पाये जाते हैं । इस ब्रह्म के तीन रूप हैं--पूर्ण पुरुषोत्तम, अक्षर ब्रह्म और अन्तर्यामी । भगवान कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम हैं । अक्षर ब्रह्म चौवीस अवतारो में प्रगट होता है ओर अन्तर्यामी ब्रह्म योगियों के हृदय में निवास करता है । च शुद्धद्रं तवाद के अनुसार जीव-जगत ओौर ब्रह्य के सम्बन्ध अंशी भाव पर आधृत है । अंश होने के कारण जीव अल्पन्न और ब्रह्म स्वज्ञ है । अंश होने के कारण ही जीव में आनंद गुण की कमी है, इसी तरह से ब्रह्म के अन्य छः गुण भी जीव में नहीं होते । केवल भगवदनुग्रह (पुष्टि) से ही जीव आनंद पा सक्ता है । पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण ओर उनके अनुग्रह्‌ से आनंद की प्राप्ति के हेतु जीव के लिए भक्ति ही एकमात्र सुलभ साधन है अतः वल्लभाचायं द्वारा निर्देशित पुष्टिमार्ग पर चलते हुए भगवदनुग्रह पाना ही पष्टिसंप्रदाय के अनुयायियों का चरम लक्ष्य दहै । जीव दो प्रकार के होते हैं - १. दैवी जीव, जिन पर प्रभु का अनुग्रह्‌ होता हं और २. आसुरी जीव जो अविद्या में फंसे रहते हैं। देवी जीव भी दो प्रकार के होते हैं-- (क) पुष्टि मार्गीय और (ख) मर्यादा मार्गीय, इनमें भी पुष्टिमार्गीय जीवों की तीन श्रेणियाँ हैं, यथा - शुद्ध पुष्टि या पुष्टिपुष्ट जीव, मर्यादा पुष्ट जीव और प्रवाह-पुष्टि जीव । पुष्टिपुष्ट जीव भेगवदनुग्रह से भगवान की नित्य लीला में प्रवेश पाते हैं। मर्यादा पुष्ट जीव मर्यादा मार्ग पर चलते हुए भगवदनुग्रह प्राप्त करते हैं और प्रवाहपुष्ट जीव শা পপ १. देखिये - शुद्धाद्न त मारंण्ड और उसकी आलोक रश्मि ( लेख ) डॉ० भगवानदास तिवारी, राष्ट्रवाणी, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पूना, सितम्बर १६६८, पृष्ठ ৮৮, | লিলি ------ ~न




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