मेरा जीवन संग्राम | Mera Jivan Sangram

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एडल्फ हिटलर - Adolf Hitler

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श्री कृष्णचन्द्र बेरी - Shri KrishnaChandra Beri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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--मेरा जीवन-संगप्राम-- १७ उल्नतिके छिपे. सामाजिक नियमोंमें यथोचित सुधारका उत्तरदायित्व समभाना दी बह प्रणाढी दै ।” उस समयक्े सामाजिक मजका इछाज उसका समूठ नाश करना था | जिस तरह प्रकृति अपनी पुरानी सष्टिको, नष्ट कर नित्य नयी नयी रचना करती दै, उसी तरह हमें भी मानवजीवन के १६ प्रति- शत भ'शोमिं न दूर ोनेवाले भवगु्ोंको निमू छ बना अपनी उन्नति के छिये नव-विचारोंकी सृष्टि करनी होगी । अपने वियेनावासमें यह भनुभव होगया कि वास्तविक काय कत्ताओंकी देशको कितनी भावश्यकता है । उनकी वास्तविक सेवाय देशके आार्थिक एवं सांस्क्तिक जीवनमें नव-संचार कर सकती थीं । मेरा मन उन दिनों सच्चे कार्यकर्त्ताओंकी खोजें था । में देशको भयंकर भूढोंसे बचानेका उपाय सोच रद था । भस्ट्रियन स्टेटका अधिकारी-वगं सामाजिक नियमोंका निरादर कर उसके सुंधारमें अपनी काइिछ़ी प्रदर्शित कर रहा था। मजदूर भाइयोंका शार्धिक संकट, उनकी आध्यात्मिक शक्तिका हास, उनके पतनके प्रत्यक्ष उक्षण; मेरे मनको ढरानेके लिये यथेष्ट थे । (_ क्या हमारे दिढको उस समय घक्का नहीं पहुंचता जब कि छुत्त की तरह भोजनपर मारनेवाढे टुकरखोर अपनेको जर्मन कहनेसे मुकर जाते हैं ? न जाने उनकी राष्ट्रीयता कहां ठप हो जाती है? क्या इस पेट-गुछामीसे इम कुछ भी सबक नहीं सीखते ? क्या इनसे हमारी राष्ट्रीय-भावनायें जागृत न होंगी! में कहता हूँ कि यही घटनाय भविष्यों हमारे राष्ट्रीय विचारोंको जोर भी उम्र बनाती जायेंगी । _' दर




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