मेरा जीवन संग्राम | Mera Jivan Sangram
श्रेणी : इतिहास / History, जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.39 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
एडल्फ हिटलर - Adolf Hitler
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श्री कृष्णचन्द्र बेरी - Shri KrishnaChandra Beri
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)--मेरा जीवन-संगप्राम-- १७
उल्नतिके छिपे. सामाजिक नियमोंमें यथोचित सुधारका उत्तरदायित्व
समभाना दी बह प्रणाढी दै ।” उस समयक्े सामाजिक मजका इछाज
उसका समूठ नाश करना था |
जिस तरह प्रकृति अपनी पुरानी सष्टिको, नष्ट कर नित्य नयी
नयी रचना करती दै, उसी तरह हमें भी मानवजीवन के १६ प्रति-
शत भ'शोमिं न दूर ोनेवाले भवगु्ोंको निमू छ बना अपनी उन्नति
के छिये नव-विचारोंकी सृष्टि करनी होगी ।
अपने वियेनावासमें यह भनुभव होगया कि वास्तविक काय
कत्ताओंकी देशको कितनी भावश्यकता है । उनकी वास्तविक सेवाय
देशके आार्थिक एवं सांस्क्तिक जीवनमें नव-संचार कर सकती थीं ।
मेरा मन उन दिनों सच्चे कार्यकर्त्ताओंकी खोजें था । में देशको
भयंकर भूढोंसे बचानेका उपाय सोच रद था ।
भस्ट्रियन स्टेटका अधिकारी-वगं सामाजिक नियमोंका निरादर
कर उसके सुंधारमें अपनी काइिछ़ी प्रदर्शित कर रहा था। मजदूर
भाइयोंका शार्धिक संकट, उनकी आध्यात्मिक शक्तिका हास, उनके
पतनके प्रत्यक्ष उक्षण; मेरे मनको ढरानेके लिये यथेष्ट थे ।
(_ क्या हमारे दिढको उस समय घक्का नहीं पहुंचता जब कि छुत्त
की तरह भोजनपर मारनेवाढे टुकरखोर अपनेको जर्मन कहनेसे
मुकर जाते हैं ? न जाने उनकी राष्ट्रीयता कहां ठप हो जाती है?
क्या इस पेट-गुछामीसे इम कुछ भी सबक नहीं सीखते ? क्या इनसे
हमारी राष्ट्रीय-भावनायें जागृत न होंगी! में कहता हूँ कि यही घटनाय
भविष्यों हमारे राष्ट्रीय विचारोंको जोर भी उम्र बनाती जायेंगी । _'
दर
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