नीति वाक्या मृतम | Niti Vakya Mritma
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
465
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र
भ थे जलमपिलाले पृज्यंपादोउसि तत्व
चेंदसिस फकेयमिदार्नी सोमदेबेन लाजिभ #
भवेति है बोदी, न ती चू सभस्तदर्चने शादय पर सं कमेक किए भकह-
कदेवके तुल्य है, न जैनसिंदधाध्तके फहनेंके लिए हंससिद्धाश्तदेष है और न
अयाकरंणमें पूज्यपाद है, फिर इस समय सोभदेवके साथ किस बिरते पर बात
करने जला है! ,
इस उसे स्प्ट है कि सोमदेव्सरि तके और जैनसिद्धान्तेके शमंत्भ व्याके-
रणेशास़के भी पंष्टित ত্ী৭
राजणीसिश सोभवेध ।
सोमदिवके राजनीति होनेका रमाण गह नीतिवांक्याश्त तो है है, इसेफे
सिवाय उनके यंशस्तिऊुकर्ें भी जशीधर मदहाराजफा चरिश्रत्विश्रण करते संमेय
शंजनीतिकी बहुत ही विशद और विस्तृत च्चों को भई है । पाठकोंकों चाहिए
कि वे इसके लिए यशस्तिलकका तृतीय आश्यास अवश्य पढ़ें |
यह आइवास रॉजनीतिफे तस्बोंसे भरा हुआ है। इस विषथर्म वह अध्वितीय
है। वर्णन करनेकी सैली बढ़ी ही न्दर है । कषित्वकी कमनीयता जौर सर-
संतासे राजनीतिकी नीरसता भाष्छम नही कहौ चली गहै है । नीतिवाक्यासतेके
अनेक अंशोंका अभिप्राथ उसमें किसी न किसी रूपभे सन्तर्निहितं जन
पेता है +}
* अकलछंकदेय--अध्सहल्ली, राजवार्तिक आदि प्रन्थोंके राचियता । दँखे-
सिद्धान्तदेव--ये कोई सैद्धान्तिक आचार्य जान पढ़ते हैं। इनका अब तक
और कहीं कोई उल्लेख देखनेमें नहीं आया। पूज्यपादू--देवनन्दि, जैनेन्द्र-
व्याकरणके कर्ता।
+ नीतिबाक्याखेत जौर यशस्तिलकके कुछ समाना्थेक धचनोंफा मिलान
कीजिएः--
१--जुभुक्षाकले भोजनकारुः-- नी° बा° प° २५३।
चारायणो निहि तिमिः पुनरस्तकारे,
मध्ये दिनस्य धिषणश्चरकः प्रभाते ।
ञुकि जगाद चष॑से भम चैव स्गै-
स्तस्याः स धव समयः श्चुधितो यदैष ॥ २९८१
का आण० ३॥
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