मौत की जिन्दगी | Maut Ki Jindagi

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Maut Ki Jindagi by प्रफुल्लचंद्र ओझा - Prafulchandra Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मौत की जिन्दगी छू है कि इसी दरस्यान कोई आदमी उस कमरे के अन्दर भी आया था, क्योंकि लड़की ने अपने ओटों पर उँगली रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया था. और बह शायद चुपचाप उल्टे पॉवों छौट गया था | दोपडर जब बीतने को आया तो छोटा बच्चा जाग पढ़ा आर फिर दोनों अगल-बगल बैठकर उसी उदासी और करणा- भरी आंखों से बाहर की ओर देखने छगे । गगन यह दृदय देखते-देखते ऊब गया था । उसने मुझसे तो अब देखा नहीं लाता । मैं और यहाँ ठद्डर्रूँगा तो खुद भी दुखी हो जाउँगा । 'चढो, हम छोग बगीचे में चढकर ऑख-मिचौनी खेलें ।”” नीलम राजी हो गई । दोनों भाई-बहन नीचे इतर गए और थोड़ी देर बाद दूर से सुन पढ़ने उनकी हँसी से गवाही दी कि कस से कम कुछ देर के छिए तो वे खिड़की के उन उदास बच्चों की याद जरूर भूख गए ।




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