जीवन - पथ | Jeewan Path

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Jeewan Path by प्रफुल्लचंद्र ओझा - Prafulchandra Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२५ उपन्यास 9८८6७०८0 हो हा (1 ४३ ३४४४ ४४३६४ आल कि का जबाव दिया,न उनकी ओर आँख उठाकर देखा। तब परिडतजी गजकर बोले--“उतरेगा कि नहीं, बोल ! नहीं तो बेर की यह काँटेदार लकड़ी तेरी पीठ पर तोड़ेँ गां !” -जाने कौन किससे कहता है ! बिनू दादा जैसे पैर लटकाकर बैठे हुए थे, वैसे ही चुपचाप बैठे रहे । एक बात न बोले, न हिले, स किसी ओर उल्लटकर देखा। । तब परिडतजी ने पुकारकर कहा-“हाबू, चढ़ तो रे, पेद पर ।* ' 'परिडतजी का हुक्म पाते ही हाबू उफ़ हाबुलचन्द्र धोती समेट- “कश पेड़ पर चढ़ गये। पेड़ की जिस ऊँची डाल पर सेरे बिनू दादा बैठे हुए थे, हाबू जब उसके पास पहुँचा तो एकाएक पेड़ पर जैसे अलय का तूफ़ान आ-गिरा। सारा पेड़ भयानक रूप से हिलने-डुलने ओर भकभोर खाने क्गा। ऊपर की ओर आँख उठाकर देखा तो बिनू दादा जी-छोड़कर पेड़. को हिला হই हैं--घाः, कैसा अयानक फकमोर था ! एकाएक प्‌-मापाक्ग करे पेड़ पर से कोई भारी चीज पानी में जा-गिरी । देखा तो हाबू सर्दार पानी में गिरकर डुबकियाँ लगा रहे है । तब परिडतजी खुद ही कपड़े समेट- कर उसे बचाने के लिए कूद पड़े । उस समय लड़कों का জু खूब शोर-गुल मचाने लगा । इसी बीच में ोक्रा पाकर चिन्‌ दादा दयुमन्तर हो गये । আজজএতের এল এও दद्षावण दक्ष क्रफ सता तर दादा ग ्क्षकातद्र्षाए प्रक्षादर:




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