पांचाली | Panchali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्मा विदुर बोले, “मैं महाराण शृतराष्ट्र की भाजा का पालते
करूगा। चाहुकारिता फरके प्रापकों कुमार्ग की राह बत, यह्
मुझसे नहीं होगा । मैं कब प70:छाव हस्तिवापुर को छोड दया ।/
महार्मा विदुर दूसरे दिन प्रततः काल श्पनी पतनी भौर कुन्ती की
सममाकर काम्यक बस की झोर चज पड़े । पाण्डद उस समय वही थे ।
कई दिन को यात्रा के पश्चात् उन्होंने पाण्डवों से जाकर भेंट की 1
महात्मा विदुर का क्राण्डवों ने पितता-तुल्य स्वागत किया । उन
महाराज धृतराष्ट्र द्वारा उतकी भत्संना की सूचता प्राप्त कर हादिक
कष्ट हुआ । धर्मराय गुधिप्ठिर बोले, “मार हमारे चाचा हैं! नीति
परागत होने फे नाते श्राप हमारे गुद तुल्य शर्य है । भापकी सेवा कद
ने का सौभाग्य श्राप्त कर हम स्वयय को धन्य समझते हैं। प्रा्माकर्र
तो चाची जी शौर माता जीको भी यही ले प्राये 1
महात्मा विदुर बोले, “जशीप्रता न फरो बेटा! मेरे गुप्तचर घुके
यही पर झाकर क्षाण-क्षए की सूचना देगें। श्मय भाने पर उन्हें
भी बुला लिया जायेगा । पहले में देखना चाहता हूँ कि मेरे निकालने
का द्रोश भौर दादा भीष्म वर क्या प्रभाव पढ़ता है ?”
घृतराष्ट्र द्वारा मद्गात्मा विदुर को हस्तितापुर से निकाले जाने का
समाचार जब भीष्म पर द्रोस के कामों मे पडा तो वे चिंतित हों
उठे । उन्हे घृतराष्ट्र की भ्दुरदशिता पर बहुत क्षीम हुमा 1
घृतराप्ट्र ने भी यह कार्य बच्चो के मोह भौर दुर्योधन की
कृमश्रणण के फल स्वरूप कर तो दिया परन्तु वाद में उन्हें भी बहुत खेद
हुआ । इतमे ण्ड नोतिज को झत्रू पक्ष में भेज कर उन्हे खगा कि उन्हों
में भपने को बहुत अ्रशक्त कर लिया ।
पृतराप्ट्र ने भयभीत हो कर झपने दूधे छो रुपा ओर भावे
दिया, महात्मा बिदुर जहाँ भी हों उन्हे কল वापस ले भाओ।
उनसे হুদা কি आपके श्रति किये यये व्यवह्यर से महाराज धृतराष्ट्र
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