अजन्ता की ओर | Ajantaa Kii Or
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अजन्ता की ओर ७ ११
ठहाके एक भयानक्र शोर बनकर गूँजते हे, और उसकी आँखेकि सामने
उस बृढ़ेकी सफ़ेद दाढ़ी, जो स्वयं उसके अपने खुनसे से गई थी, एक:-
भयानक ब्रवंडर बनकर फड़फड़ाती रही, और उसे ऐशा प्रतीत हुआ कि.
सारे भारतकी स्त्रियां किसी ऐसे भयेक्र ख़नी मज़ाक्पर हँस रही हैं जो
उसकी समभसे बाहर है !
भारतीय नारियोंकी वास्तविक प्रकृति ! उनको आत्माकी शान्तता {`
उनकी कोमल्ता ! उनकी ममता |
निर्मल के बहुतसे मित्र मुसलमान थे, किन्तु दंगेके दिनोंमें वह उनके
मुइर्लोमें नहीं जा सकता था | एक दिन उसे मालूम हुआ कि उसके.
साथी रिपोर्टर और मित्र हनीफ़को सख्त बुखार और सरसाम हुआ है ।
লিল ने रहा गया और वह हिम्मत करके भिन््डी बाज़ार पहुँच ही गया,
जहाँ एक चालमें इनीफ़ अकेला रहता था |
क्राफोडे माकैटपर सिवाय निर्मलके सरे दिन्द्र बससे उतर गए |
वह कोट-पतलून पहने हुए. था और उसकी वेश-भरूषासे यह ` बिलकुल
पता न चलता था कि वह हिन्दू है या मुसल्लमान या ईसाई। रंग भोरा
होनेके कारण तो वह पारसी ही दिखाई पढ़ता था, किन्तु फिर भी जेसे-
जैसे बस बम्बईके ध्याक्षिस्तानी? इलाकेमें जा रही थी, उसका हृदय भय :
ओर परेशानीसे धड़क रहा था| एक बार तो उसे ऐसा लगा कि उसके
बराबर बैठा हुआ हृहा-कह्ा शुन्डानुमा मसलमान घुवक उसके हृंदयकी
घड़कन सुनकर समझ जाएगा कि यह हिन्दू है ओर अपनी जाकेदमेंसे छुस
निकालकर उसकी कमरतमें भोंक देगा, उसी प्रकारः जेते चरनी रोडपर उस.
दुबले-पतनज्ञे युबकको एक हिन्दू शडेने यलतीः से मार डाला था | चौर
एकाएक न जाने क्यों उतकी कमरमें, रीढ़की हडुके पास, खुरली-
महसूस होने लगी; और एक काव्पनिक चाकुका तेज़ फल उसकी पसलियों
म जसे सता चला गया ।
बारल्लीवाला अस्पतालके पास वह बससे उतरकर पसी-प्यी चला,
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