अजन्ता की ओर | Ajantaa Kii Or

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Ajantaa Kii Or by ख्वाजा अहमद अब्बास - Khwaja Ahamad Abbas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अजन्ता की ओर ७ ११ ठहाके एक भयानक्र शोर बनकर गूँजते हे, और उसकी आँखेकि सामने उस बृढ़ेकी सफ़ेद दाढ़ी, जो स्वयं उसके अपने खुनसे से गई थी, एक:- भयानक ब्रवंडर बनकर फड़फड़ाती रही, और उसे ऐशा प्रतीत हुआ कि. सारे भारतकी स्त्रियां किसी ऐसे भयेक्र ख़नी मज़ाक्पर हँस रही हैं जो उसकी समभसे बाहर है ! भारतीय नारियोंकी वास्तविक प्रकृति ! उनको आत्माकी शान्तता {` उनकी कोमल्ता ! उनकी ममता | निर्मल के बहुतसे मित्र मुसलमान थे, किन्तु दंगेके दिनोंमें वह उनके मुइर्लोमें नहीं जा सकता था | एक दिन उसे मालूम हुआ कि उसके. साथी रिपोर्टर और मित्र हनीफ़को सख्त बुखार और सरसाम हुआ है । লিল ने रहा गया और वह हिम्मत करके भिन्‍्डी बाज़ार पहुँच ही गया, जहाँ एक चालमें इनीफ़ अकेला रहता था | क्राफोडे माकैटपर सिवाय निर्मलके सरे दिन्द्र बससे उतर गए | वह कोट-पतलून पहने हुए. था और उसकी वेश-भरूषासे यह ` बिलकुल पता न चलता था कि वह हिन्दू है या मुसल्लमान या ईसाई। रंग भोरा होनेके कारण तो वह पारसी ही दिखाई पढ़ता था, किन्तु फिर भी जेसे- जैसे बस बम्बईके ध्याक्षिस्तानी? इलाकेमें जा रही थी, उसका हृदय भय : ओर परेशानीसे धड़क रहा था| एक बार तो उसे ऐसा लगा कि उसके बराबर बैठा हुआ हृहा-कह्ा शुन्डानुमा मसलमान घुवक उसके हृंदयकी घड़कन सुनकर समझ जाएगा कि यह हिन्दू है ओर अपनी जाकेदमेंसे छुस निकालकर उसकी कमरतमें भोंक देगा, उसी प्रकारः जेते चरनी रोडपर उस. दुबले-पतनज्ञे युबकको एक हिन्दू शडेने यलतीः से मार डाला था | चौर एकाएक न जाने क्‍यों उतकी कमरमें, रीढ़की हडुके पास, खुरली- महसूस होने लगी; और एक काव्पनिक चाकुका तेज़ फल उसकी पसलियों म जसे सता चला गया । बारल्लीवाला अस्पतालके पास वह बससे उतरकर पसी-प्यी चला,




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