अर्ध कथानक | Ardh Kathanak
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शा
मॉगी तो उन्होंने उत्तर दिया, “ उधर अपने छोग बहुत कम हैं, मागें कठिन
है, छोग भोंग और गॉजा पीनेवाले हैं और मथुराकी स्त्रियां मायावी होती हैं। ”
सियोकि मायावी होनेकी वात पठकर देसी आये विना नहीं रहती।
दक्षिणवालोंके लिये मथुराकी स्त्रियों मायावी होती हैं और इधर उत्तरबालोंके
लिये वगाछकी स्त्रियों जादूगरनी होती हैं, जो आदमीको बैल बना देती हैं
और बंगालियोंके लिये कामरूप ( आसाम ) की सियो कपटी ओर मयंकर
होती हैं । बगालमें पूरे ग्यारह वर्ष रहनेके बाद भी हम वछियाके বাজ नहीं
बने, मनुष्य ही बने रहे, यही इस बातका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि ये बातें कोरी
गप हैं। हॉ तो विष्णुमटको सथुराकी मायावी स्तरियोंसे सुरक्षित रखनेके लिये
उनके चाचा भी साथ हो लिये थे और इन्दी चाचा भतीजेका याना-इन्तान्त
आज ८७ वर्ष बाद एक ऐतिहासिक ग्रन्थ बन गया है !
क्या ही अच्छा होता यदि हिन्दीके घुरधर विद्वान् आगे आनेवाली
सन््तानके लिये अपनी अनुभूतियोंको सुरक्षित रखते | कितने पाठकॉंकों यह
मालूम है कि महामना मालवीयजीने आजसे ६०-६२ वर्ष पहले कालेज़के
दिनोंमि एक प्रहसन लिखा था जिसमे झक्कड़सिंहके रूपमें अपना चित्रण
किया था १ माल्वीयजीकी कविता सुन छीजिये---
अपने सम्बंधमें
गरे जूहीके हैं गजरे पडा रह्ढीं डुपद्ठा तन ।
भला क्या पूछिए घोती तो ढाकेसे मँगाते है ॥
कभी हम वारनिश पहनें, कभी पंजाबका जोड़ा |
हमेशा पास उण्डा है ये “ झकड़खिंह ' गाते है ॥
न ऊधोसे हमें लेना न माधोका हमें देना ।
करें पेदर जो खाते है व-दुखियोंको खिलाते हैं ॥
नहीं डिप्टी चना चाहे न चाहे हम तसिल््दारी |
पड़े अलमस्त रहते हैं युँही दिनको बिताते हैं ॥
न देखे हम तरफ उनकी जो हमसे नेक मुंह फेरे ।
जो दिरुसे टमसे मिलत्ते है झुक उनको देख जाते है ॥
नहीं रहती फिकर हमको कि छव तेर ओ लकड़ी ।
॥
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