हिंदी कवि चर्चा | Hindi Kavi Charcha

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Hindi Kavi  Charcha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यन्द घरदाई द्द ही विवाद दढ लाता हि । फझुए लोग फदते हैं पिंगल के रंग पर दिंगल पना दुसरे लोग योलने हैं ऐसा दो नदीं सफता टिंगल पिंगल से पुराना ए । प्रसका कदादिय फारण यह है फि इन लोगों को. इसका पता नहीं फि पिंगल फा झयथ न्लमापा नहीं दिप्ट भापा हि । घनमापा की रपगा के पढले थी पिंगल फा प्रयोग होता था और एन्द के प्रकरण में पिंगलाघाय फो फोन नहीं शानना ! दिंगल में रचना सदा से दोती लाएं £ै प्ौर दोती रदेगी भी 1. फिल्‍्तु साथ दी पिंगलयन्पुर्दों फा दिंगल छॉटना भी घलता दही रहेगा । पिंगटपन्पु पदि पिंगल को छोड़ फर पिंगठ फे दंग पर झपनी देश-भाषा में रचना पफरेंगे तो चद्द दिंगल नहीं नो कर फ्या होगी । टिंगल 'घौर फुछ नहीं इन पिंगटी लोगों की फाय्य-मापा है । यदी फारण हि फि टिंगर में जद प्राद्न भर भपसंश के सूप मिलते एं चहीं देद के भी । टिंगल फो 'ठगर,” 'दगए, 'दिम नल, प्डींग के भादि का रूपान्तर समझना दीफ नदीं जेयता । पसका सीधा संदेत पिंगल के आधार पर रथी ऐई देठ रघना दी हि । प्ें भूलना न दोगा कि दिंगल में जो देय की भायना ऐँ याद पिंगल पो पियार से है । फौन नहीं जानता कि गोस्वामी तुलसीदास ने भी 'यपनी चाणी को 'गिरा-प्राम्य दी फदा है जौर पढ़े यट्े सम्ारों की प्रधस्तियाँ भी प्रात में लिखी गईं हैं। नाम से मामी का चोघ दोता ऐ तो दो, परन्तु यए तो सत्य है कि नाम नामदाता की समझ का परिचायक होता ऐ न कि नामी फी थक्ति और प्रतिभा का । अतणुय यद काइना कि डिंगल इसी लिए श्राम्प-गिरा का घोतक नहीं कि इसमें बढ़े चढ़े रासा यने , ठीक नहीं । कदने का तात्पयं यद. नददीं कि रासो की रचना टिंगल में हुई, प्रत्युत यदद है कि ब् भाज बहुत कुछ दिंगठ के रूप में दी इमारे सामने है उसके पिंगठ का. पता लगाना पण्ठितों का कार्य है सामान्य घाग्मटों की चिन्ता नहीं । रासो की रचना के सम्बन्ध में एक भौर चात भी कही गई है । कहते हैं- 'उभय मास दिन ध्रद्ध चर करिय रासों चहुआान , रसना भट्ट सुचन्द फी बेछि उसा परमान” ।




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