सफ़र | Saphar

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Saphar by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बह किसकी तसवीर थी ! হ लेकिन आज उसका मन अशान्त हो गया | वह न समझ सकी कि उसे क्या होने वाला है| उसने कई बार उत्तेजित होकर श्रपनी नातिन को खूब चूमा और जब नातिन ने श्रपनी डोटी-छोटी उँगलियों से उसकी आ्ाँखें छूते हुए पूछा, “दादी, तू लोती क्‍यों है !” तो वह चोकी अँसू--- ? पति के श्रन्तिम दशंन !! सुन्दर शाल से उन्हें ढका देख आखिरी आँसू बहे और फिर वे रोज के जीवन में रल गये थे। पति की धुं घली याद श्राती थी, प्र वे नाती, नातिन, बेटों, बहुओ्रों के पीछे मुस्कराते हुए पूर्ण सन्तुष्ठ लगते थे। जो कुछ उसके पास था वह उसी में अपने को पूरे समझती थी। और आज अ्रनजाने फिर वह्दी आँसू वह नातिन की बात परर श्रटकी। उसने श्रपने को सँमाला और मन-ही- मन कुछ सोचा, पर आँसू रुके नहीं। उसमें उनको थामने की सामथ्य नहीं थी । मलते ही जीवन का रोमान्स चुक गया था, लेकिन वह उससे परे न थी। पिछले जीवन की रगीन भावुकता श्राज हृदय को छू रही थी। विवाह श्रौर पति की याद श्रायी। एक-एक दिन और साल की, एक- एक बच्चे की! तीसरे बच्चे पर वह श्रटकी श्रोर ठहर गयी | वर्ह बह ज़रा टिकी रहना चाहती थी। कुछ सोच समझ ओर सुल कर आगे बढ़ना चाहती थी। उस साल का पूरा चित्र, उस चित्र की बारीकियाँ, खूबियाँ, एक-एक रेखा, रंग और शेड वह सब कुछ बूकना चाहती थी; उसमें झपने नाटकीय जीवन की परिभाषा निकालने की घुन भी जाण्त थी | ग्रहस्थी की मोटी रूप-रेखा पति-पत्नी और दो बच्चे, बड़ा बंगला, शहर में मान-सम्मान । पति वकील था। शहर में खूब नाम था। पत्नी.-का भी श्रादर था | वह अपनी गृहस्थी मे धुली-मिली'श्रपने को पूणं पाती थी । पति श्रजीब था, बात-बात में दंसी-मजाक; और पत्नी भी उत्तर देने मे उस्ताद थी । पति श्राफिख सेश्राकर गोल कमरेम श्राराम कुर्सी पर लेटा हुआ पुकारता, नवीन --श्रो नवीन !?




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