बुध्ददेव | Buddhdev
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्देव
आँसू भर कर प्राणी सुभे) पुकारता है ; किन्तु मनुष्य ज्ञानो
मेरी ओर नहीं निहारता। कहो उमापति ! अब हमारी क्या
गति होगी ?
शिव--शान्ति रखो, शान्ति रखो !| इतनी व्यग्र मत हो ।
देवता जानते है धमं नष्ट हो रहा है; पृथ्वी जोबों के ताप से तपित
है, तुम्हे बड़ा कष्ट दो रहा है । इसोघे प्रेरित हकर तो भगवान
ने फिर इस भूमि पर अवतार लिया है)
शानित--( घबराकर ) एँ ! भगवान ने अवतार ?
शिव--हाँ, अब देवियों के दुख का अन्त होने वाला है ।
शान्ति--अन्त नही, देवेश, यह तो अनन्त होने कौ सूचनां
है। एक समय ब्राह्मणो का अधिकार बढ़ाने के लिये प्रभु ने,
कुठार हाथ में लिये, जन्म लिया, माता को मार, पृथ्वी को इक्ोस'
बार क्षत्रो-शून्य किया--
मारे सारे वीर योद्धा विप्र-शासन के लिये,
मच गया पृथ्वी पै हाहाकार जीवन के लिये ।
धम -है महेश ! फिर, भगवान ने प्रचंड धनुष धारणकर
लंका पर जा डंका बजाया। 'असुर' ओर 'राक्षस' कद्-कह कर
लाखों मनुष्यो को यमलोक पहुँचायां। रावण-विजयी होकर
श्ये, राज-काज संमाला, तो वशिष्ठ के संकेत से शम्बूक तपस्वी
का बध कर डाला; निरपराविनी सोताको निवोसित किया;
দ্বীন वर्ष की सेवा-रूपी कठिन तपस्या करने वाले लक्ष्मण को,
प्राश-दरड दिया--
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