स्वामी दयानंद सरस्वती का निजमत | Sawami Dayanand Sarswati Ka Nijamat

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Sawami Dayanand Sarswati Ka Nijamat  by गंगाप्रसाद शास्त्री - GANGAPRASAD SHASTRI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৬ ६ 7 सर्गके अन्तके श्लोकोर्मे कही जाचुकी ( स०0 १६ शलो० ४० ) उसकी पुनसखक्त दोषधे बगान करना आदिकाव्यको दूषित करना है अतपवच चतुदेश सर्म प्रक्षिप्त ही समझना चाहिए- प्रत्येक मनुष्य जानता है कि राज्य दशरथ पुत्रेष्टि यक्ष कर रहेथे पुत्रेष्टि यज्ञग अश्बच मारकर हचन करना किलाीने भी नदीं माना हे-ओर न अश्वप्रध पुत्र प्टि यज्ञका कोई अंगही ও “महामसारतके बनपब में रामोयास्यानडे उसमें समस्य गसचरिनहे परन्तु बहा रामचन्टरजी कै जन्पर লিন করিত द्वारा कागद पुरि का वणन नहीदं ' ( महा० मीमासा० पृण ५ । तच अप्यमार कर हवन करने का प्रक्ररण्‌ २८ सम द्वारा मिला देना किसी अममंदोहों दुरात्ता कओंदुस्लाह-के सिवाय पौर क्या कह सकते हैं यजुबंदम स्पष्ट लिखा रई य)-ऽबरन्तं जि्घांसति त८म्यमीति वरूण: परी मत्तः पर: ; श्वा (यजुर्बद २२।५४) यो 5बन्तम्श्व मिर्घांसाते हन्तु मच्छ नि चबरूुरा। तमश्त ज्वॉसनत पम्प तू इसे स्न्‌ महापरमाष्य | जो अश्यको मारता चाहता है उतने बसण सछ काता है । झोर यह मनु रकृत इते तरद अपनादित हाता हैं- इसकी अतिरिक्त शाखाः এক শা , शब्द আলি জা ঘা, चाची श्राना दयक श्य सी दन वाता शकोने “गांह स्तियसूमें হলি শীল: ক্লিন” গাল गाग {तिस কলিগ मारी जाय उसे লীলা ্া श्रतिभशि कते 3-तस्या [दो र -परन्तु यह्‌ इनक) आक्यान अथवा वक्षन पाणिनि निनि श्वरामुच रम हन्‌ धानु লিলা और गति ( ज्ञान गमन पापि अथर्से लिखाते इसलिए गा शब्दका अथ | मिय जिसओ व्र प्राप्त कोसाय ग्रधात्‌ | रखनी पड़े उसे गोप्त कहते हैं पाणिनि सुतिने रूवय अट्ाध्याय मेलिखा दै “তঘল গাই?) (श्रए्ा०२।२।८८) यहं उप शब्दकः




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