युद्ध - यात्रा | Yuddh Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
104.11 MB
कुल पष्ठ :
421
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युद्ध-यात्ा ः
यहाँ का ता सारा दृश्य ही बदल गया था |
घिपू ' घपू ......ठपू....ढपू, . ८”
दूसरी झोर से--“मच...मच...हुमच ...हुमच...'
कहीं कहीं से--'मार्च | मार्च !” बीच-बीच में ककश स्वर
में--'लेफ़ट. . .राइट...! दाँयें घूम ! आगे. .
ब्रेनेरो की पहाड़ियों में चारों तरफ़ से यही आवाज़ ।
जितने लोग दिखलाई पढ़ते सबकी देह पर वर्दी । यदि किसी को
पूरी वर्दी न मिली रहती तो उसने आधी, चौथाई वा नाम के
लिए उसका एक टुकड़ा ही पहन लिया था । बहुतेरों ने अपनी
साधारण पोशाक ही इस ढंग से पहनी थी कि वह दूर से ठीक
वर्दी जैसी दीखती |
उनके कंधों से राइफल कला करते । दूर से ही, पर ज़रा
ध्यान से देखने पर यह भी स्पष्ट हो जाता कि उनमें कितने
राईफल नकली वा पिछली शताष्दियों में बने थे । किसी
केसी के पास तो वे निरे काठ के थे |
आठ वष के बच्चे से पचास वर्ष के बूढ़े तक इस क़वा-
यद में शामिल थे ।. ये अलग-अलग टुकड़ियों में माच करते
पर कभी-कभी एक साथ हो जाते और चार-चार की कतार में
मुख्य सड़क पर आते ।
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