पतितोद्धारक जैन धर्म | Patitoddharak Jain Dharm

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Book Image : पतितोद्धारक जैन धर्म  - Patitoddharak Jain Dharm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृष्ट ११ १४ १९ २५ २६ ३२२ २५ ৩৪ ८९ ९७० ९२ ९४ ९.६. ९८ ९८ ९९, १०२ १०२ १०४ शुद्धाशाड़े पत्र। पंक्ति (१५ ) अशुद्ध जाहार मिलना चाहिए कष्ट आज्ञाप्रधान करमें होगा सुनारने अपने अभीवन्दना जसे सेवारा खतखता पपी नदीं उन कभी ्म्ज उपवीस ये या शुद्ध आचार ১৫ नष्ट आज्ञाप्रदान करके होता सुनारके अपना अभिवन्दना जैसे संवारा खनखना पापी उज्न के लिए समझ उपहास ই খা




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