पतितोद्धारक जैन धर्म | Patitoddharak Jain Dharm
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृष्ट
११
१४
१९
२५
२६
३२२
२५
৩৪
८९
९७०
९२
९४
९.६.
९८
९८
९९,
१०२
१०२
१०४
शुद्धाशाड़े पत्र।
पंक्ति
(१५ )
अशुद्ध
जाहार
मिलना चाहिए
कष्ट
आज्ञाप्रधान
करमें
होगा
सुनारने
अपने
अभीवन्दना
जसे
सेवारा
खतखता
पपी नदीं
उन
कभी
्म्ज
उपवीस
ये
या
शुद्ध
आचार
১৫
नष्ट
आज्ञाप्रदान
करके
होता
सुनारके
अपना
अभिवन्दना
जैसे
संवारा
खनखना
पापी
उज्न
के लिए
समझ
उपहास
ই
খা
User Reviews
No Reviews | Add Yours...